टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- झारखंड में नक्सली वारदातें होते रहती है और आए दिन पुलिस-माओवादियों मुठभेड़ भी होते रहते हैं. हाल के दिन में कई बड़े-बड़े माओवादी लीडर्स भी शिकंजे में आए. जो सलाखों के पीछ अपनी राते गुजार रहे हैं. वही, कई इनामी नक्सली कमांडर ने भी हथियार छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़े. उन्हें ये महसूस हो गया कि इस रास्ते चलना जिंदगी दुश्वारा करना है. लिहाजा, सरकार की आत्मसमर्पण पॉलिसी का लाभ उठाकर सरेंडर किया.
नक्सलियों का सिकुड़ता दायरा
दूसरा पहलू ये भी देखे तो समय के साथ इनकी सल्तनत भी दरकी और इनका दायरा भी सिकुड़ता गया. साथ ही इनका मनबोल और ताकत भी घटी , जिससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, अभी भी ये पूरी तरह से नेस्तानाबूत या खत्म हो गये हैं. यह कहना बिल्कुल गलत होगा. आज भी दूर-दराज और जंगल से सटे गांवों में इनकी मौजूदगी और हरकते है. जो अपनी खौफ की हुकूमते चल रहें है. कुछ चिजे और आकंड़े चौकाने वाले भी है. जो ये दर्शाता है कि आज भी नक्सलियों के चलते एक आम इंसान अपनी कीमती जिंदगी गंवा देता है .
आकंड़ों के मुताबिक झारखंड में अलग-अलग नकस्ली संगठन मौजूद हैं. जो आज भी समाज की मुख्यधारा से अलग हटकर व्यवस्था के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं. लेकिन, इनकी लड़ाई में आम इंसान भी पीस जाता है. आकंड़ों को मुताबिक झारखंड बनने के बाद हर साल औसतन 34 लोगों की हत्या नक्सली कर रहें हैं. वही, अगर पिछले 24 सालों को झांके तो 826 लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया. इनके निशाने पर ग्रामीण भी होते है, जो कभी पुलिस की मुखबिरी के नाम पर तो किसी को पनाह देने के नाम हत्या को अंजाम दिया जाता है.
मुखबिरी के नाम पर हत्या
मुखबिरी के नाम पर नक्सली अक्सर हत्या करते हैं, जो आए दिन अखबरों की सुर्खियां भी बनती है. ये सिलसिला अभी तक थमा नहीं है. प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के निशाने पर मुखबिर ज्यादा रहते हैं, क्योंकि इन्हें डर रहता है कि उनकी गतिविधियों की जानकारी पुलिस तक पहुंच जायेगी. दरअसल, पुलिस चप्पे-चप्पे पर अनाधिकृत तौर पर मुखबिरों को बहाल करती है. नक्सली गतिविधि या फिर दूसरी ऐसी खबरों के बदले कुछ इनाम भी दिया जाता है. इनाम में क्या और कितना मिलता है . यह सरकार के रिकॉर्ड में नहीं होता है. नक्सली इलाकों में मुखबिरी की वजह से ही पुलिस को कई बार बड़ी कामयाबी मिलती है. लेकिन, अगर ये बात नकस्ली जान जाते है, तो फिर खबर देने वाले मुखबिर की जान ले लेते हैं. नक्सलियों के द्वारा आए दिन पुलिस मुखबिरी के आरोप में लोगों को मारा जा रहा है.
क्या कहते हैं आंकड़े
आईए जान लेते है कि किस साल कितने लोगों की हत्या नक्सलियों के द्वारा की गई. झारखंड का निर्माण 2000 में किया गया था. उस वक्त से अगर अभी तक इसकी गिनती करें तो , 2000 में 13, 2001 में 36, 2002 में 25, 2003 में 43, 2004 में 16, 2005 में 28, 2006 में 18, 2007 में 65, 2008 में 61, 2009 में 68, 2010 में 73, 2011 में 79 , 2012 में 49, 2013 में 47, 2014 में 49, 2015 में 15, 2016 में 34, 2017 में 27, 2018 में 17, 2019 में 20 , 2020 में 8, 2021 में 11, 2022 में 06, 2023 में 14 और 2024 (फरवरी तक) 3 लोगों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतारा . अभी तक 826 लोगों की हत्या माओवादियों ने की है.
2020 के बाद घटी वारदातें
आकड़े जो कहते है कि उसके मुताबिक 2020 के बाद नक्सलियों की गतविधि कम हुई, तो हत्या का दौर भी थमा, जो अभी तक जारी दिख रहा है. लेकिन, 2015 से पहले देखे तो इनकी धमक और दायरा कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ था. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि समय के साथ नक्सली संगठन भी दबाव में हैं, और उसमे शामिल लोग भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं. सरकार की आत्मसमर्पण नीति का फायदा उठाकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहते हैं. आए दिन देखने को मिल भी रहा है.