रांची (RANCHI): शुक्रवार का दिन झारखंड के युवाओं के लिए बेहद अहम रहा इस दिन हाईकोर्ट ने तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए नियोजन नीति मामले में अपना फैसला सुनते हुए झारखंड की नियोजन नीति 2021 को रद्द कर दिया. इसके साथ ही अटक गया लगभग 14 हजार युवाओं की नियुक्ति का मामला. लेकिन इन सबके बीच एक सवाल ये उठ रहा है कि क्यों झारखंड हाई कोर्ट को ये नियमावली को रद्द करना पड़ा आखिर किन कारणों से उच्च न्यायालय ने हेमंत सोरेन सरकार द्वारा प्रतिपादित इस संशोधित नियमावली को रद्द कर फिर से परीक्षा कैलेंडर जारी करने का आदेश दिया. सात सितंबर को अदालत ने मामले में सभी पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पूर्व में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि अगर संशोधित नियमावली के तहत कोई नियुक्ति प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले से प्रभावित होगी इसलिए अदालत ने सभी विज्ञापन को रद्द कर दिया है. गौर करने वाली बात यह है कि झारखंड में नौकरी के लिए विज्ञापन जारी तो किया जा रहा है लेकिन शायद ही कोई ऐसा एक्जाम हो जो विवादो में नहीं रहता हो. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है की क्या हेमंत सरकार का ये फैसला अज्ञानता और अपरिपक्वता का परिणाम है. आखिर करीब 14 हजार लोगों की नियुक्ति कोर्ट के फैसले के बाद रुक गई इसका जिम्मेदार कौन है. वो लोग जो अपनी नियुक्ति को लेकर प्रसन्न थे और अपने उज्ज्वल भविष्य को देख रहे थे उनकी नियुक्ति होते होते आखिर किसकी गलती से अटक गई. हेमंत सरकार आखिर किन मानदंडों के साथ नियम बना रही थी जिसे अयोग्य और संतुष्ट न होकर कोर्ट रद्द कर दे रहा आईए जानते हैं किन कारणों से कोर्ट ने इस संशोधित नियमावली को रद्द किया है.
क्षेत्रीय भाषा के आधार पर संशोधन करना गलत
एसएससी की संशोधित नियमावली के खिलाफ रमेश हांसदा सहित अन्य की ओर से हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी . इस दौरान सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा था कि जेएसएससी नियुक्ति नियमावली में संशोधन क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया है ताकि यहां के रीति-रिवाज और संस्कृति के बारे में जानकारी हो सके. राज्य सरकार को नियुक्ति के लिए ऐसी नीति बनाने का अधिकार है. ऐसे में प्रार्थी अथवा अन्य की आपत्ति पर अदालत फैसला नहीं ले सकती है. जबकि प्रार्थी ने इसी संशोधन पर पुनर्विचार के लिए कोर्ट में आवेदन दिया था।
दसवीं और बारहवीं तक की पढ़ाई झारखंड से होने की शर्त
इस संशोधित नियमावली में सामान्य वर्ग (GENERAL CATEGORY) के अभ्यर्थियों को थर्ड और फोर्थ वर्ग के नौकरी के लिए झारखण्ड राज्य से मैट्रिक और इंटरमीडिएट की शिक्षा होना अनिवार्य कर दिया गया था. और दूसरे राज्यों से आ कर केवल 9th और 10th करने वाले भी नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे. अभ्यर्थी को पहली कक्षा से 10वीं तक पूरा पढाई झारखण्ड राज्य में ही होना चाहिए. ऐसे मे उन लोगों को झारखंड में नौकरी नहीं मिल सकती थी वो झारखंड के होते हुए भी अपने किसी रिश्तेदार के यहां रहकर पढ़ाई कर रहे हों . या जो झारखंड के होने के बाद की किसी कारण से दूसरे राज्य जाकर पढ़ाई किए होंगे वो अपने राज्य झारखंड में वापस नौकरी के लिए नहीं आवेदन कर पाते. क्या ये अदूरदर्शिता नहीं थी. क्या हेमंत सरकार ने जल्दबाजी में एक बड़े अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव नहीं किया था. कोर्ट ने इसी पॉइंट पर इस नियमावली में त्रुटि पाया. प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुशल कुमार का कहना था कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति के लिए 10वीं और 12वीं की परीक्षा राज्य के संस्थान से पास करने की शर्त लगाना पूरी तरह से असंवैधानिक है क्योंकि राज्य के कई मूलवासी ऐसे हैं, जो राज्य के बाहर रहते हैं. उनके बच्चों ने राज्य के बाहर से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की है. ऐसे में मूलवासी होने के बाद भी उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर करना गलत है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है, जो किसी प्रकार के भेदभाव की अवधारणा नहीं रखता है.
हिंदी और अंग्रेजी को गायब करना गलत
यह भी कहा गया कि भाषा के पेपर में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. राज्य के अधिसंख्य लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी और अंग्रेजी को भाषा (पेपर दो) से बाहर कर देना पूरी तरह से गलत है. इसको लागू करने से पहले सरकार की ओर से कोई स्टडी नहीं की गई है और न ही इसका कोई ठोस आधार है. इस तरह की असंवैधानिक शर्त के आधार पर राज्य में नियुक्ति नहीं की जा सकती है. राज्य में 61.25 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं. इसलिए विवादित नियुक्ति नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए. सरकार के इस संशोधित नियमावली के खिलाफ रमेश हांसदा सहित अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किया. याचिका में कहा गया था कि भाषा के आधार पर सरकार का नियमावली में संशोधन करना दूसरे भाषाओं के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव है. संविधान इसकी मंजूरी नहीं देता है. इस दौरान सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा था कि जेएसएससी नियुक्ति नियमावली में संशोधन क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया है ताकि यहां के रीति-रिवाज और संस्कृति के बारे में जानकारी हो सके. राज्य सरकार को नियुक्ति के लिए ऐसी नीति बनाने का अधिकार है. ऐसे में प्रार्थी अथवा अन्य की आपत्ति पर अदालत फैसला नहीं ले सकती है.
उपरोक्त ऐसे कारण हैं जो की बेहद गैरजिम्मेदाराना है. ऐसे में क्या हेमंत अपने अधिकारियों से विचार विमर्श किए बगैर ही संशोधन लागू कर दिए या फिर अधिकारियों ने भी अपनी लापरवाही दिखाई. सवाल तो उठेंगे और जवाब भी मांगेंगे लेकिन इस लापरवाही से जो झारखंड के अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ है उसपर मरहम कैसे लगाएगी हेमंत सरकार.
पूछते हैं झारखंड के अभ्यर्थी
बता दें झारखंड की नियोजन नीति 2021 को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया, HC ने कहा सरकार की नियोजन नीति सवैंधानिक नहीं, तो फिर हजारों छात्रों का भविष्य के भविष्य से खिलवाड़ क्यों, किसने की ये खिलवाड़ ? कौन है जिम्मेदार नेता या अधिकारी जानबुझ कर या फिर अज्ञानता से हुई ये चूक! कैबिनेट में जब इसे लाया गया तो क्या आईएएस अधिकारियों ने भी नहीं दिया ध्यान ! हेमंत सरकार ने छात्रों के साथ जानबूझ कर की साजिश या फिर हेंमत सरकार के साथ उनके ही अधिकारी कर रहे हैं साजिश ! JSCC के विज्ञापन में कई विसंगति ! ये जानबूझकर की गई या फिर अनजाने में हुई ये गलतियां ? JSCC गठन के साथ ही अपने कामो के वजह से विवादों में रहा है JSCC . सरकार की भद्द पिटवाने वाले अधिकारियों पर क्यों ना हो कार्रवाई . कैबिनेट सचिव से लेकर मुख्यसचिव ने भी नहीं दिया ध्यान. ऐसे बहुत से सवाल है जो हेमंत सरकार की नियोजन नीति पर उठ रहे हैं. इन सभी सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी है.
जानिए क्या और कब हुआ संशोधन
सबसे पहले बता दूँ कि ये संशोधित नियमावली हेमंत सोरेन सरकार द्वारा पिछले वर्ष मानसून सत्र में लाया गया था. हेमंत सोरेन सरकार ने नियुक्ति नियामवाली में कई तरह के संशोधन के बाद रोजगार के द्वार खोल दिए थे. राज्य सरकार ने इससे संबंधित 8 प्रस्ताव को मंजूरी दी है. झारखंड मंत्रालय में कैबिनेट की बैठक में कुल 27 प्रस्ताव पर मुहर लगी थी. जिसके अनुसार राज्य में JSSC के तहत आयोजित परीक्षा में केवल मुख्य परीक्षा ही ली जाएगी. प्रारम्भिक परीक्षा को समाप्त कर दिया दिया गया था. इस बैठक में ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम, 2008 ( झारखंड अधिनियम 16, 2008 ) की धारा 12 की उप धारा (i) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा ( इंटरमीडिएट/10 2 स्तर ) संचालन नियमावली , 2015 (यथा संशोधित, 2016) में संशोधन की स्वीकृति दी गई. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक स्तर तकनीकी / विशिष्ट योग्यता वाले पद) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021 गठित करने की स्वीकृति दी गई थी. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (मैट्रिक / 10वीं स्तर) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021 गठित करने की स्वीकृति दी गई. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक स्तर) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021 गठित करने की स्वीकृति दी गई. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/10 2 स्तर कंप्यूटर ज्ञान एवं कंप्यूटर में हिंदी टंकण अहर्ता धारक पद हेतु) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021 गठित करने की स्वीकृति दी थी .