दुमका(DUMKA):दुमका में शुक्रवार के दिन इंडोर स्टेडियम में पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा की ओर से पिछड़ा महा सम्मेलन सह विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था. यह आयोजन गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वर्गीय बीपी मंडल की जयंती के मौके पर आयोजित थी. मकसद था दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ओबीसी के हक और अधिकार की मांग को लेकर एकजुट होना और उसके लिए रणनीति बनाना.
अचानक मंच अखाड़े में हुआ तब्दील
कार्यक्रम में कई दलों के नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक मंच पर बैठे थे, लेकिन अचानक मंच अखाड़े में तब्दील हो गया और यह सब हुआ सूरज मंडल के एक बयान से. अपने संबोधन के दौरान सूरज मंडल ने क्या बोला. सूरज मंडल के इस संबोधन के तुरंत बाद जमकर तालियां भी बजी, लेकिन देखते ही देखते गोड्डा के पूर्व विधायक संजय यादव मंच से उतरकर बाहर चले गए, क्योंकि सूरज मंडल ने राजद सुप्रीमो लाल यादव के खिलाफ टिप्पणी की थी, और संजय यादव राजद पार्टी के नेता है. संजय यादव के बाहर निकलते ही इंडोर स्टेडियम रणक्षेत्र में तब्दील हो गया. राजद समर्थकों ने सूरज मंडल के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. हाथों में तलवार लेकर कुछ समर्थक इंडोर स्टेडियम में प्रवेश कर गए और जान मारने की धमकी तक देने लगे, जमकर कुर्सियां फेंकी गई.
समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की
इस मामले पर हमने राजद नेता संजय यादव और बीजेपी नेता सूरज मंडल से भी बात की. जिस पर संजय यादव ने कहा कि सूरज मंडल बीजेपी के एजेंट हैं. वो कभी ओबीसी का लीडर नहीं हो सकता. ओबीसी के लीडर बीपी मंडल थे, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे, जिन्होंने संविधान बनाया. आज के समय में देश का सबसे बड़ा ओबीसी लीडर अगर कोई है ,तो वह लालू यादव और नीतीश कुमार है. दूसरा कोई नहीं हो सकता है.
सूरज मंडल ने कहा हमने उस वक्त भी कहा था कि गज दे दो नहीं तो थान ले लेंगे
वहीं सूरज मंडल ने कहा कि मैं उसे वक्त के दोहे को मंच पर पढ़ा, जब लालू यादव ने कहा था कि अलग झारखंड राज्य हमारी लाश पर बनेगा. हमने उस वक्त भी कहा था कि गज दे दो नहीं तो थान ले लेंगे. उस समय ये दोहा भी पढ़ा था. जिसे आज मंच पर एक बार फिर पढ़ कर सुनाया. वैसे उन्होंने कहा कि लाश का मतलब पॉलिटिकल लाश है.जो भी हो, देखते ही देखते जिस प्रकार इंडोर स्टेडियम रणक्षेत्र में तब्दील हो गया. उसे कहीं से भी जायज नहीं कहा जा सकता है. ऐसी ही स्थिति में खून खराबा हो जाता है. वैसे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा ने कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी, लेकिन दलगत राजनीति से अलग हटकर सभी दलों के नेता एक मंच पर तो बैठे, लेकिन ओबीसी के मुद्दे पर एक मन से नहीं बैठ पाए. यही वजह रही कि इंडोर स्टेडियम अखाड़े में तब्दील हो गया.
रिपोर्ट पंचम झा