धनबाद(DHANBAD): जिले के लोग बाहर रहने वाले अपने रिश्तेदारों को यह कह कर बुलाते थे कि यहां का बिरसा मुंडा पार्क बहुत आकर्षक और सुव्यवस्थित है. लोग आते भी थे और दो-चार घंटे सुकून के पल बिताते थे और माफिया नगरी से अलग शहर की एक छवि लेकर जाते थे. लेकिन लगता है कि अब धनबाद के लोग रिश्तेदार और संबंधियों को धनबाद बुलाने से परहेज करेंगे. अगर बुलाएंगे भी तो बिरसा मुंडा पार्क लेकर नहीं जाएंगे. हम ऐसा क्यों कह रहे है, इसके पीछे कई वजह है. बिरसा मुंडा पार्क की सुविधाएं एक-एक कर बंद हो रही है. इसकी वजह सिर्फ रखरखाव पर ध्यान नहीं देना है.
21 एकड़ में में फैला है बिरसा मुंडा पार्क
21 एकड़ में फैले धनबाद के बिरसा मुंडा पार्क का लोकार्पण एक दशक पहले हुआ था. उस समय यह आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था. छुट्टी के दिनों में भारी भीड़ जुटती थी. घर परिवार वाले बच्चों के साथ बिरसा मुंडा पार्क पहुंचते थे. शाम होने के बाद ही वापस लौटते थे. बच्चों के लिए भी कई सुविधाएं थी. टॉय ट्रेन की व्यवस्था की गई थी. यह ट्रेन गिरिडीह के खंडोली डैम से मंगाई गई थी लेकिन पिछले कई महीनों से बच्चों को आकर्षित करने वाली ट्रेन बंद है. झूलों की हालत भी बहुत सही नहीं है. झूले कुछ इधर टूट कर लटक रहे हैं तो कुछ उधर. स्लाइडर भी टूट गए हैं. बच्चे अगर उस पर चढ़े भी तो खतरा हो सकता है. ऐसी बात नहीं है कि पार्क में प्रवेश करने वालों की पॉकेट ढीली नहीं होती. 5 साल के बच्चों तक का प्रवेश फ्री है लेकिन 5 साल से ऊपर के प्रत्येक व्यक्ति को ₹25 का भुगतान करना पड़ता है. एक आंकड़े के मुताबिक निगम को सिर्फ टिकट की बिक्री से प्रत्येक महीने डेढ़ लाख तक की आमदनी हो जाती है. इसके अलावा मेला लगाने की भी निगम अनुमति देता है.
निगम को होती है चार लाख हर एक महीने आमदनी
ऐसा कहा जाता है कि मेला से भी निगम को हर महीने ढाई लाख रुपए की आमदनी हो जाती होगी. यानी महीने में निगम को बिरसा मुंडा पार्क से चार लाख की कमाई हो जाती है. तो फिर सुविधाएं देने में निगम पीछे क्यों रहता है. नवंबर महीना बीतने को है, दिसंबर महीने के शुरुआती दिनों से ही बिरसा मुंडा पार्क में सैलानियों की भीड़ जुटने लगती है. इस साल भी जुटेगी. यह भीड़ कमोबेश जनवरी महीने तक रहेगी. निगम की आमदनी भी बढ़ेगी, लोग सुविधाएं खोजेंगे. लेकिन सुविधाएं मिलेगी नहीं, बच्चे ट्रॉय ट्रैन खोजेंगे. ट्रेन चलेगी ही नहीं, बच्चे झूले पर चढ़ना चाहेंगे, गार्जियन खतरे के डर से चढ़ने देंगे नहीं, ऐसे में तो फिर वही बात होती दिख रही है कि धनबाद में योजनाएं तो बनती है, क्रियान्वित भी होती है लेकिन रखरखाव के अभाव में दम तोड़ देती है. तो क्या बिरसा मुंडा पार्क के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है.
रिपोर्ट: शांभवी सिंह, धनबाद