टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हर साल आता है और जाता है. आता है तो उमंगों के रथ पे सवार होकर आशा को साथ लेकर लेकिन जब जाता है तो आकलनों के कसौटी पर चढ़ कर और अपना हिसाब देकर. चाहे यह साल आम आदमी का हो या किसी खास व्यक्तित्व का, किसी घर-बार का हो या किसी सरकार का, एक सामान्य से घर में जलने वाले चूल्हे की आग सरकार को जला भी देती है या तपा तपा कर कुंदन भी बना देती है और सरकार की एक कलम से जलते चूल्हे को बुझा भी सकती है या उसपे पकने वाले पकवान का स्वाद भी बढ़ा सकती है. सबका अपना अपना समय है. इसलिए दोनों के बीच तारतम्यता ही आने वाले समय के लिए नई आशा और विश्वास को बढ़ा सकता है. अब 2023 जो जा रहा है तो हेमंत सरकार एक आम आदमी के कसौटी पर कितना खरा उतर पाई है इस आकलन को समझने की जरूरत है.
ऐसे तो 2023 झारखंड सरकार के लिए खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए बेहद तनावपूर्ण रहा है. ED की कार्रवाई से हुई भ्रष्टाचार के खुलासे से हेमंत सोरेन की नींद उड़ा दी है. बार बार ED का समन जाना , फिर इनका ED के सामने पेश नहीं होना, खामखा एक जिद्द भी हो सकती है जिन्हें हेमंत सोरेन अपना सम्मान कह सकते हैं या दाल में बहुत ही काला हो सकता है. परंतु, सरकार और हेमंत सोरेन की छवि को एक आम आदमी के नजर में मिट्टी में फेंकते जरूर हैं. हालांकि यहां यह मिट्टी उर्वर भी साबित हो सकती है. सब समय की बात है. पर इस पर असर देखा जाएगा 2023 के विकासोन्मुख बजटीय बिंदु के क्रियान्वयन का और उससे भी ज्यादा आम जनता में इनके प्रति आम धारणा का ऐसे कई बिंदु हैं जहां बात हो सकती है - जैसे खतियानी स्थानीय मुद्दा,सरना कोड,पारा शिक्षकों की स्थायीकरण,स्नातक और स्नातकोत्तर बेरोजगार युवकों को सालाना भत्ता, प्रतिभावान विद्यार्थियों को अपने खर्च पे विदेश पढ़ाई के लिए भेजना ,नौकरी में पेंशन वापस करना इत्यादि।ये सभी गेम चेंजर मुद्दे हैं जिसे सरकार ने हाथ में लिया. लेकिन ये सभी आकलन की बाजी में धारणा का विषय बन गया है.
इस कड़ी में एक बिंदु यह है कि झारखंड सरकार की ओर से "आपकी योजना आपकी सरकार ,आपके द्वार"कार्यक्रम के दौरान जब मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की ओर से साईकिल वितरण योजना की बात की और छात्राओं से पूछा कि आपको साईकिल मिली या नहीं तो जवाब में सभी छात्राओं ने कहा - नहीं. यह एक आम कार्यक्रम था , वहां आम जनता इकट्ठी थी. यहां से एक धारणा उत्पन्न हुई कि मुख्यमंत्री झूठ बोल रहे हैं. इस बात का वीडियो विपक्ष वाले खास तौर पर उछाल रहें हैं. इसी तरह स्थानीय मुद्दे पर नियुक्तियों में 60 - 40 का मुद्दा बेहद अस्पष्ट है. इस मुद्दे पे पूरे झारखंड का युवक सड़क पर है. बेरोजगारी भत्ता भी बेहद घुमाया फिराया लगता है. कहने का अर्थ यह है कि सरकार को खुशफहमी में दौड़ लगाने के बजाय सही तथ्यों के साथ अपनी योजना को, अपनी सरकार को ,जनता के द्वार पर लेकर जाना चाहिए. क्योंकि भले यह 2023 का जाता समय है पर 2024 चुनाव का आता समय भी है . चुनाव में यह भी काम करेगा. झारखंड सरकार के लिए 2023 परीक्षा की वो अंतिम घड़ी है जब विद्यार्थी पर सबसे ज्यादा दबाव होता है.
रिपोर्ट: प्रकाश कुमार