धनबाद(DHANBAD) | मान्यता है कि गया में भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर पितृ पक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग मिलता है. भगवान श्री हरि यहां पितृ देवता के रूप में स्वयं विराजमान रहते है. पितृ पक्ष में किए गए पिंडदान से पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख ,शांति और खुशहाली आती है. पितृ पक्ष में वंशज अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते है. वैसे तो देश में कई जगह पर पिंडदान और तर्पण किए जाने की परंपरा है लेकिन गया में पिंडदान का विशेष महत्व माना गया है. यही वजह है कि देश की बात कौन करे , विदेशी भी यहां पिंडदान करने को आते है.
विष्णुपद और फल्गु नदी के घाट पर यह पिंडदान होता है
विष्णुपद और फल्गु नदी के घाट पर यह पिंडदान होता है. बुधवार को विदेशी पिंडदान करने वालो का एक दल भी पहुंचकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया. गया जी रबर डैम के पास जर्मनी से आए 12 पिंडदानियों ने अपने पुत्र, पति और पूर्वजों की मोक्ष के लिए पिंडदान किया. विदेशी महिलाओं ने कहा कि यहां आने से मन को शांति मिली. 12 विदेशियों के दाल में 11 जर्मन महिलाएं और एक पुरुष है. सभी विदेशी महिलाएं सनातनी परंपरा के अनुसार इस मौके पर साड़ी पहनी और पूरे विधि- विधान के साथ पिंडदान को पूरा किया.
पितृ पक्ष के 16 दिनों में श्राद्ध कर्म किये जाते है
पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृ पक्ष में पितरों को तृप्त करने के प्रयास किए जाते हैं. इसके लिए इन दिनों में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है.29 सितंबर से शुरू हुआ यह 14 अक्टूबर 2023 को यह खत्म होगा. धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड में गया में पिंडदान का महत्व बताया गाया है. मान्यता है कि गया में भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. यदि इस स्थान पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पर पितृ देवता के रूप में स्वयं विराजमान रहते हैं. इसी लिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.गया में 54 पिंड वेदी मौजूद बताये जाते है
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो .