धनबाद(DHANBAD); धनबाद में बिजली संकट परवान पर है. गर्मी भी आफत बनी हुई है. बिजली संकट से राहत की मांग तो सभी कर रहे हैं, प्रयास भी कर रहे है. भाजपा के लोग भी प्रयासरत हैं, लेकिन गुटों में बटे होने के कारण इनकी आवाज दमदार नहीं हो पा रही है. बिजली संकट को लेकर अलग-अलग खेमे में भाजपा के लोग सक्रिय है. बुधवार को भाजपा नेता और पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल कई पार्टी नेताओं के साथ बिजली जीएम से मिले ,तो बुधवार को ही भाजपा नेत्री रामा सिन्हा भी बिजली जीएम से मिली. इधर, धनबाद विधायक राज सिन्हा ने बुधवार को धनबाद विधानसभा क्षेत्र के नेता और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर 14 जून को जीएम कार्यालय का घेराव करने की घोषणा की है.
धनबाद भाजपा की हो रही किरकिरी
बिजली संकट को लेकर भाजपा के भीतर के गुटों में हो रही पहल पर चर्चा स्वाभाविक है. झारखंड में अभी भाजपा विपक्ष की भूमिका में है. इसलिए उसकी जवाबदेही भी बनती है. लेकिन लोकसभा चुनाव में भी गुटों में बंटी भाजपा बिजली संकट को लेकर भी खेमे में दिख रही है. मतलब धनबाद भाजपा को एक सूत्र में बांधकर रखने वाले की कमी खल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह का टिकट काट दिया गया. ऐसे में भाजपा को एकजुट करना बहुत आसान नहीं दिख रहा है. फिलहाल धनबाद महानगर और ग्रामीण जिला अध्यक्ष की नियुक्ति ही हुई है, कमेटी का गठन नहीं हुआ है. ढुल्लू महतो अब सांसद बन गए हैं, निश्चित रूप से धनबाद भाजपा पर उनकी पकड़ अब मजबूत होगी. धनबाद भाजपा की दिशा और दशा भी बदलेगी, लेकिन गुटबाजी पर नियंत्रण करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.
लोकसभा चुनाव में भी भितरघात का खतरा था
2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को भितरघात का खतरा था और यही वजह है कि संगठन मंत्री और झारखंड प्रभारी कई बार धनबाद आये. नेताओं से बंद कमरे में बातचीत की. इसका असर भी दिखा ,लेकिन बिजली संकट को लेकर भाजपा जिस तरह गुटों में बंटकर कर काम कर रही है, इससे उसकी किरकिरी जरूर हो रही है. धनबाद जिले के 6 विधानसभा क्षेत्र में चार पर भाजपा का कब्जा है. निरसा से भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता विधायक हैं, तो सिंदरी से भाजपा के इंद्रजीत महतो विधायक है. धनबाद से भाजपा से राज सिन्हा विधायक हैं, तो बाघमारा से ढुल्लू महतो भाजपा के विधायक थे. अब वह सांसद बन गए है. झरिया से कांग्रेस की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह है तो टुंडी से मथुरा महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक है. इसी साल के अंत में झारखंड विधानसभा के चुनाव होने है. महानगर और ग्रामीण भाजपा अध्यक्षों के लिए सीटों की संख्या बढ़ाना बड़ी चुनौती होगी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो