दुमका(DUMKA):संथाल परगना प्रमंडल को झारखंड की सत्ता का प्रवेश द्वार माना जाता है. प्रमंडल के 6 जिला में कुल 3 लोकसभा और 18 विधानसभा क्षेत्र आता है.प्रमंडल में तमाम राजनीतिक दलों की राजनीति संताल आदिवासी समाज के इर्द गिर्द घूमती है.वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव और हालिया सम्पन्न लोकसभा चुनाव में क्षेत्र की जनता ने झामुमो के पक्ष में बंपर वोटिंग किया.नतीजा हुआ कि 3 में से 2 लोकसभा सीट पर झामुमो ने कब्जा जमाया. वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो 18 में से 9 सीट पर झामुमो ने कब्जा जमाया जबकि 5 सीट कांग्रेस और 4 सीट बीजेपी के खाते में गया.
हेमंत मंत्रिमंडल में संताल आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधि को नहीं बनाया गया मंत्री
वर्ष 2019 के विधान सभा चुनाव परिणाम के आधार पर झामुमो के नेतृत्व में सरकार बनी. झामुमो को कांग्रेस और राजद के भी समर्थन मिला.संथाल परगना प्रमंडल के बरहेट विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले हेमंत सोरेन सीएम बने.लगभग 4 वर्षो तक सीएम रहने के बाद जनवरी 2024 में कथित जमीन घोटाला मामले में हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा. सीएम की कुर्सी चली गयी.जमानत पर जेल से निकलने के बाद एक बार फिर हेमंत सोरेन की ताजपोशी हुई,लेकिन पूरे कालखंड पर नजर डाले तो मंत्रिमंडल में संताल आदिवासी समुदाय के जनप्रतिनिधियों को स्थान नहीं मिला.
चंपाई मंत्रिमंडल में बसंत सोरेन को मिला मौका
संताल आदिवासी समाज से चंपाई सोरेन सरकार में चंद महीनों के लिए बसंत सोरेन को ही स्थान मिला.वर्तमान मंत्रिमंडल में उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.कहने के लिए तो वर्तमान में प्रमंडल से सीएम हैं, विधानसभा अध्यक्ष हैं, झामुमो कोटे से हफीजुल हसन और कांग्रेस कोटे से दीपिका पांडेय सिंह तथा डॉ इरफान अंसारी मंत्री हैं। पूर्व में आलमगीर आलम और बादल पत्रलेख भी मंत्री रह चुके हैं, लेकिन सवाल मंत्रीमंडल में संताल आदिवासी समाज के प्रतिनिधित्व का है.
उपराजधानी दुमका जिला है मंत्री विहीन
वर्तमान समय मे देखें तो झारखंड की उपराजधानी दुमका जिला मंत्री विहीन है. संभवतः ऐसा पहली बार हुआ जब मंत्रीमंडल में दुमका जिला के किसी भी जनप्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया.2019 में सरकार गठन के समय दुमका के जरमुंडी विधायक बादल पत्रलेख को कांग्रेस कोटा से मंत्री बनाया गया.चंपाई मंत्रीमंडल में बादल के साथ साथ दुमका विधायक बसंत सोरेन को मंत्री बनाया गया था,लेकिन हाल ही में जब हेमंत सोरेन सीएम बने और मंत्रीमंडल का गठन किया गया तो बादल और बसंत दोनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
कहीं हेमंत सोरेन को अपनो से ही खतरा तो नहीं
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि संताल आदिवासी समाज के हितैषी होने का दंभ भरने वाली झामुमो और उसके अगुवा माने जाने वाले हेमंत सोरेन की सरकार में संताल आदिवासी समाज की उपेक्षा क्यों? कहीं हेमंत सोरेन को अपने ही समाज के जनप्रतिनिधियों से खतरा तो नहीं? वैसे भी जेल से निकल कर चंपाई सोरेन को हटाकर हेमंत सोरेन के सीएम बनने पर तरह तरह की चर्चा हो रही है.
रिपोर्ट-पंचम झा