धनबाद(DHANBAD): धनबाद की सिम्फ़र (केंद्रीय खनिज एवं ईधन अनुसंधान संस्थान ) अब कोल इंडिया के कोयले की गुणवत्ता की जांच नहीं करेगी. मतलब अब थर्ड पार्टी सैंपलिंग करने से हाथ खड़े कर लिए है. वजह गड़बड़ी की शिकायत है अथवा पावर की लड़ाई, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन इसमें खर्च का दृष्टिकोण भी हो सकता है. सूत्र बताते हैं कि सिम्फ़र प्रति टन 8. 80 रुपये थर्ड पार्टी सैंपलिंग का चार्ज लेती थी. जबकि फिलहाल लगभग ₹3 की दर से थर्ड पार्टी सैंपलिंग करने वाले कोल इंडिया की सूची में शामिल हो रहे है. थर्ड पार्टी सेंपलिंग आखिर होता है क्या ?इसका मतलब है कि कोयला कंपनियों की ओर से उपभोक्ताओं को खासकर पावर प्लांट को दिए जाने वाले कोयले की सैंपल जांच निष्पक्ष एजेंसी से कराना है. पहले पावर प्लांट कोल् कंपनियों पर आरोप लगते रहते थे कि खराब गुणवत्ता का कोयला दिया जाता है.
थर्ड पार्टी रिपोर्ट पर ही मिलता था भुगतान
थर्ड पार्टी यानी निष्पक्ष एजेंसी जांच कर कोयले की गुणवत्ता की रिपोर्ट देती है. उक्त रिपोर्ट के आधार पर ही कोयला कंपनियों को कोयले की कीमत का भुगतान किया जाता है. इधर, यह भी सूचना मिल रही है कि कोल इंडिया ने 5 एजेंसियों को सिम्फ़र से कम दर पर थर्ड पार्टी सैंपलिंग के लिए सूचीबद्ध करने की तैयारी में है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सिम्फ़र यानी केंद्रीय खनिज एवं ईधन अनुसंधान संस्थान 10 नवंबर से ही कोल इंडिया के कोयले की गुणवत्ता की जांच यानी थर्ड पार्टी सैंपलिंग का काम बंद कर दिया है. वैसे, सूत्र यह भी बताते हैं कि कोयले की थर्ड पार्टी सैंपलिंग का काम बंद होना सिम्फ़र के लिए बड़ा झटका हो सकता है. सिम्फ़र को इस काम के लिए प्रतिवर्ष 700 से 800 करोड रुपए तक की आमदनी होती थी.
थर्ड पार्टी सैंपलिंग के लिए कई एजेंसियों ने दिखाई दिलचस्पी
जैसे ही अन्य संस्थाओ को इस विवाद की सूचना मिली, थर्ड पार्टी सैंपलिंग के लिए कई एजेंसियों ने दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. हालांकि सिम्फ़र में थर्ड पार्टी सैंपलिंग को लेकर पहले कई बार विवाद भी हुए. पूर्व निदेशक के कार्यकाल में थर्ड पार्टी सैंपलिंग में गड़बड़ी के आरोप लगे.आरोप दिल्ली तक पंहुचा. कई बार रिपोर्ट को चुनौती भी दी गई. सूत्रों के अनुसार सिम्फ़र के नए निर्देशक की नियुक्ति के बाद थर्ड पार्टी सैंपलिंग को लेकर कोल इंडिया को सिम्फ़र की ओर से एक पत्र लिखकर पूर्व के नियम और शर्तों में संशोधन की मांग की गई थी. सिम्फ़र की ओर से कोल इंडिया को इसके लिए दो माह का समय दिया गया था. लेकिन सिम्फ़र के पत्र को कोल इंडिया ने गंभीरता से नहीं लिया. नतीजा हुआ कि करार टूट गया और अब हो सकता है कि कोई नई एजेंसी यह काम करे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो