धनबाद (DHANBAD) : देश की कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया में बोनस की घोषणा के बाद कोलियरी क्षेत्र में कर्मी अकाउंट में पैसा आने का इंतजार कर रहे है. 9 अक्टूबर के पहले खाते में पैसा भेज देने की अधिसूचना जारी कर दी गई है. लेकिन कोल इंडिया के कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें बोनस नहीं मिलेगा. सूत्रों के अनुसार कंपनी से धोखाधड़ी, हिंसक व्यवहार, चोरी, कंपनी की संपत्ति का दुरुपयोग या तोड़फोड़ के कारण सेवा से बर्खास्त किए गए कर्मचारी बोनस की राशि प्राप्त करने के लिए अयोग्य होंगे. इसके अलावा प्रशिक्षु, जो समेकित वजीफा प्राप्त कर रहे थे, वर्ष के दौरान प्रशिक्षु अधिनियम 1961 के तहत बोनस भुगतान के लिए पात्र नहीं होंगे. हालांकि वह नियमित वेतनमान में रखे जाने की तिथि से भुगतान के हकदार हो सकते है. इसके अलावा जो कर्मी वीआरएस के तहत सेवानिवृत्ति के कारण कार्यरत नहीं है, सेवा में रहते जिनकी मृत्यु हो गई है.
सालों-साल पहले रिटायर्ड हुए कर्मियों की छलकी पीड़ा
कंपनी की सेवाओं से त्यागपत्र देने वाले या कंपनी की सेवा निवृत्ति से पहले सेवानिवृत्ति योजना के तहत अलग होने वाले कर्मी भी बोनस भुगतान के लिए योग्य नहीं होंगे. यह अलग बात है कि समूचे कोयला उद्योग में ऐसे कर्मचारियों की संख्या कितनी है, इसका तो कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. इधर, कोल इंडिया में रिकॉर्ड मुनाफे के बाद बोनस की घोषणा के बीच सालों-साल पहले रिटायर्ड हुए कोल कर्मियों की पीड़ा भी अब जुबान पर आ गई है. आश्चर्यजनक पहलू यह है कि कोल इंडिया के अध्यक्ष रहे कई अधिकारियों को अभी भी पेंशन के मद में सिर्फ ₹2500 मिलते है. यह दावा पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रामानुज प्रसाद ने किया है. पहले रिटायर्ड हुए कोयलाकर्मियों की पेंशन की राशि अभी भी ₹1000 से कम है.
26 वर्षों में एक बार भी पेंशन की राशि में संशोधन नहीं
बताया गया है कि 26 वर्षों में एक बार भी पेंशन की राशि में संशोधन नहीं हुआ है. यह भी बताया गया है कि जान जोखिम में डालकर लोग कोयले का उत्पादन करते है. धरती का सीना चीर कर कोयला निकालते हैं और राष्ट्र की उन्नति में सहयोग करते है. कोयला खदानों में प्रकृति के खिलाफ काम की वजह से दुर्घटनाएं भी होती है. ऐसे में कर्मियों की जान भी जाती है. मजदूर जान जोखिम में डालकर कोयला काटते है, लेकिन जब वह रिटायर्ड करते हैं तो उन्हें संकट में जीना पड़ता है. इधर, कोयला उद्योग में कार्यरत ठेका कर्मियों को लेकर भी मजदूर संगठन सवालों के घेरे में है. यह अलग बात है कि मजदूर संगठनों की बोली में अब वह ताकत नहीं है, जो पहले थी. प्रबंधन भी इसका फ़ायदा उठाने में पीछे नहीं रहता. मजदूरों की संख्या लगातार घट रही है और आउटसोर्सिंग का प्रचलन बढ़ रहा है. इस वजह से मजदूर संगठनों में भी कमजोरी आई है. मजदूर संगठन भी सीना तानकर मैनेजमेंट के सामने खड़े नहीं होते है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो