धनबाद (DHANBAD) : बिहार की वर्तमान राजनीति में भाजपा फ्रंटफुट पर है कि नीतीश कुमार बैकफुट पर. इसका आकलन शुरू हो गया है. बुधवार को भाजपा ने अपने सात मंत्रियों को शपथ दिलाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार के अंतिम दिन तक हर राजनीतिक दांव खेलेगी. 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अब भाजपा के 21 मंत्री विपक्ष को टक्कर देते नजर आएंगे. इस विशेष परिस्थिति में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार से अपना हाथ खींच लिया और अपना कोटा भी भाजपा के हवाले कर दिया तो इसके कोई न कोई बड़े संकेत है. इसी समीकरण को साथ लेकर एनडीए आगामी विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में है. सवाल यह किया जा रहा है कि जदयू ने क्यों नहीं अपने कोटे से मंत्री बनाया. सवाल यह भी उठ रहा है कि भाजपा ही क्यों सात मंत्रियों को शपथ दिलाई.
समझा जा रहा है कि बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के तहत विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है. भाजपा के मंत्रियों में कुर्मी से कोई मंत्री नहीं था. इसलिए कृष्ण कुमार मंटू को मंत्री बनाया गया है. सुशील कुमार मोदी के बाद मारवाड़ी समाज से कोई मंत्री नहीं था, इसलिए संजय सरावगी को मंत्री बनाया गया होगा. तेली जाति से बीजेपी में कोई मंत्री नहीं था. इसलिए मोती प्रसाद को मंत्री बनाया गया होगा. बीजेपी ने मल्लाह जाति से विधायक विजय मंडल को भी मंत्री बनाया है. कुशवाहा जाति पर पकड़ बनाने के लिए सम्राट चौधरी के साथ विधायक सुनील कुमार को भी मंत्री बनाया गया है. भूमिहार जाति पर विशेष प्रभाव डालने के लिए उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के साथ जीवेश मिश्रा को भी मंत्री बनाया गया है. राजपूत जाति को भी प्राथमिकता देते हुए विधायक राजू सिंह को मंत्री बनाया गया है. यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के कोर वोटरो में सवर्ण और वैश्य माने जाते है. भाजपा हमेशा इन पर भरोसा करती है.
यह भी हो सकता है कि हरियाणा और उत्तराखंड में चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में विस्तार भाजपा ने किया तो उसे जीत मिली. इसी विश्वास के साथ बिहार में भी बीजेपी के रणनीतिकारों ने क्या यह प्रयोग किया है? पिछले साल ही हरियाणा चुनाव से ठीक पहले सीएम मनोहर लाल खट्टर की जगह नायाब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया और बीजेपी लगातार तीसरी बार जीत कर सत्ता में वापसी की. उत्तराखंड में भी तीरथ सिंह रावत को सीएम पद से हटाकर पुष्कर सिंह धामी को बनाया तो लगातार दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनी. बहरहाल, कहा जा रहा है कि इसी राह पर चलकर भाजपा ने बिहार में राजपूत, भूमिहार, कुर्मी, कुशवाहा और केवट जातियों को साधकर चुनावी जंग में उतरने का फैसला किया है. इस फैसले में नीतीश कुमार की कितनी हामी है. यह तो आगे ही पता चलेगा. हालांकि अभी कहा जा रहा है कि बीजेपी और नीतीश कुमार ने एनडीए सरकार में मंत्री बनाकर सभी जाति और समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. देखना है अब आगे-आगे होता है क्या?
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो