रांची(RANCHI): राजभवन के द्वारा हेमंत सोरेन की बहुप्रचारित 1932 का खतियान विधेयक को इस टिप्पणी के साथ वापस कर दिया गया है कि अभी इस विधेयक की वैधानिकता पर राज्य सरकार को समीक्षा करने की जरुरत है. राजभवन ने कहा है कि राज्य सरकार इस विधेयक की वैधानिकता पर समीक्षा करे, ताकि यह विधेयक संविधानिक प्रावधानों और माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों अनुरूप निर्मित हो सकें.
यहां बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा फिलहाल पूरे राज्य में खतियान जोहार यात्रा निकाली जा रही है, 1932 के खतियान को हेमंत सोरेन की सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि के बतौर पेश कर रही है, इस अधिनियम के अनुसार, स्थानीय व्यक्ति का अर्थ झारखंड का अधिवास (डोमिसाइल) होगा जो एक भारतीय नागरिक है और झारखंड की क्षेत्रीय और भौगोलिक सीमा के भीतर रहता है और उसका या उसके पूर्वजों का नाम 1932 या उससे पहले के सर्वेक्षण / खतियान में दर्ज है. इसमें उल्लेख है कि इस अधिनियम के तहत पहचाने गए स्थानीय व्यक्ति ही राज्य के वर्ग-3 और 4 के विरुद्ध नियुक्ति के लिए पात्र होंगे.
संविधान की धारा 16 में सभी नागरिकों को नियोजन के मामले में समान अधिकार
राज्यपाल की ओर से राज्य सरकार के पास इस विधेयक को एक बार फिर से समीक्षा करने के लिए वापस भेजा गया है. इसके साथ ही यह टिप्पणी भी की गयी है कि उक्त विधेयक की समीक्षा के दौरान पाया गया है कि संविधान की धारा 16 में सभी नागरिकों को नियोजन के मामले में समान अधिकार प्राप्त है.
नियोजन के मामले में विशेष प्रावधान लगाने का अधिकार सिर्फ संसद को
संविधान की धारा- 16(3) के अनुसार मात्र संसद को यह शक्तियाँ प्रदत्त है कि वह धारा 35 (A) के अंतर्गत विशेष प्रावधान के तहत नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की विशेष शर्तें लगा सकती है. राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है. ए.वी.एस. नरसिम्हा राव एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश एवं अन्य (AIR 1970 SC422) में भी स्पष्ट व्याख्या की गई है कि नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्तें लगाने का अधिकार मात्र भारतीय संसद में ही निहित है.
संविधान और उच्चतम न्यायालय के आदेश के विपरीत है यह विधेयक
इस प्रकार यह विधेयक संविधान के प्रावधान और उच्चतम न्यायालय के आदेश के विपरीत है. झारखंड पाँचवीं अनुसूची के तहत आच्छादित राज्य है. पाँचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में शत प्रतिशत स्थानीय व्यक्तियों को नियोजन में आरक्षण देने के विषय पर उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक बेंच द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किया जा चुका है. उक्त आदेश में भी उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में नियुक्तियों की शर्तों लगाने के राज्यपाल में निहित शक्तियों को भी संविधान की धारा 16 के विपरीत घोषित किया गया था. सत्यजीत कुमार बनाम झारखण्ड राज्य के मामले में भी पुनः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य द्वारा दिये गए शत प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया गया था.
विधि विभाग ने भी किया था अगाह
यहां बता दें कि विधि विभाग द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि प्रश्नगत विधेयक के प्रावधान संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत है और कई न्याय-निर्णय/न्यायादेशों के अनुरूप नहीं है. साथ ही भारतीय संविधान के भाग III के अनुच्छेद 14, 15, 16 (2) में प्रदत्त मूल अधिकार से असंगत और प्रतिकूल प्रभाव रखने वाला प्रतीत होता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 से भी प्रभावित होगा तथा अनावश्यक वाद-विवादों को जन्म देगा.
इस प्रकार राजभवन की इस टिप्पणी बाद कि राज्य विधानमंडल को नियोजन के मामले में ऐसे प्रावधान बनाने की शक्ति नहीं, राज्य विधानमंडल ऐसे मामलों में कोई विधेयक पारित नहीं कर सकती, विधेयक की वैधानिकता पर गंभीर सवाल खड़ा हो गया है.
रिपोर्ट: देवेंद्र कुमार