Ranchi- 17 जुलाई, 2022 से जेल में बंद स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह के आवास पर दो मई को एनआईए की छापेमारी के बाद इस पूरी कार्रवाई को राजनीतिक चश्मे से देखने की प्रक्रिया तेज हो गयी है. एनआईए के छापे को चुनाव के पहले असंतोष को कुचलने की कार्रवाई को रुप में पेश करने की कोशिश की जाने लगी है. दावा किया जा रहा है कि आदिवासी-मूलवासी मुद्दों और हाशिये पर खड़े समूहों की आवाज को उठाते ही साजिश की शुरुआत हो जाती है. यह छापेमारी भी इसी का एक हिस्सा है.
ध्यान रहे कि बीते 2 मई की सुबह सुबह आदिवासी मूलवासी मुद्दों पर मुखरता और स्वतंत्र पत्रकार का दावा करने वाले रूपेश कुमार सिंह के आवास पर एक बार फिर से एनआईए की छापेमारी हुई थी, यह छापेमारी सिर्फ रुपेश कुमार सिंह के आवास पर ही नहीं हुई थी, एनआईए की यह कार्रवाई विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन के संयोजक दामोदर तुरी, मजदूर संगठन समिति के महासचिव बच्चा सिंह और झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े अनिल हांसदा, दिनेश टुडू, नागेश्वार महतो और संजच तुरी के आवास पर भी किया गया था.
तब एनआईए ने यह दावा किया था कि इनके घरों से अपमानजनक सामग्री, मोबाइल फोन, डिजिटल उपकरण और कई संदिग्ध बैंक खातों के विवरण को जब्त किया गया है. जिसके बाद बच्चा सिंह को 8 मई से पहले किसी भी दिन रांची कार्यालय आने को कहा गया था. जहां उनके साथ पूछताछ की जाने लगी थी.
ध्यान रहे कि रुपेश कुमार सिंह पर 12 अप्रैल 2022 को बिहार के रोहतास जिले में कुख्यात माओवादी नेता विजय कुमार आर्य, राजेश गुप्ता, उमेश चौधरी, अनिल यादव के साथ मिलक माओवादियों के लिए चंदा संग्रह करने का आरोप है. हालांकि रुपेश का दावा है कि जिस 12 अप्रैल को उन पर माओवादियों के चंदा इक्कठा करने का आरोप है, उस दिन वह सुरेश भट्ट ऑडिटोरियम, नागपुर में उपस्थित थें और अपने फेसबुक पर भी लाइव थें, जिसका आयोजन वीरा साथीदार स्मृति समन्वय समिति के द्वारा किया गया था. इसके साथ ही रुपेश का दावा है कि उनके द्वारा कभी भी रोहतास जिले का दौरान नहीं किया गया, यह सारे आरोप तथ्यहीन और सच्चाई से परे है. रुपेश की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी इप्सा काफी मुखर है रूपेश जब से जेल में है, तब से उसकी पत्नी मुखर है. इप्सा का दावा है कि पिछले कुछ महीनों से झारखंड पुलिस के द्वारा उन्हे बार बार पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है. साथ ही पुलिस विभाग से जुड़े अधिकारियों के द्वारा बार बार उनके घर का दौरा किया जा रहा है. उनके द्वारा घर का फोन, किताबें और पत्रिकाओं को जब्त किया जा रहा है.
इप्सा का दावा है कि इन पत्रिकाओं में कहीं से भी कुछ आपत्तिजनक नहीं है. इस पुस्तक की सारी जानकारियों दूसरे सभी पत्र-पत्रिकाओं में भी मौजूद है. इस बीच अपने को नागरिक अधिकार कार्यकर्ता बताने वाले दामोदर तुरी ने दावा किया है कि केन्द्र की सरकार हर विरोधी आवाज को दबाना चाहती है, यह कार्रवाई भी उसी का एक हिस्सा है, जैसे-जैसे 2024 नजदीक आयेगा, इस प्रकार की गतिविधियां और भी तेज होगी.
लेकिन दामोदर तुरी राज्य सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाते हैं, उनका कहना है कि केन्द्र सरकार की इस ज्यादती पर राज्य सरकार की चुप्पी और भी खतरनाक है, राज्य सरकार की चुपी यह बताती है कि इस मुद्दे पर वह केन्द्र सरकार के साथ खड़ी है, और उसे अपने नागरिकों की अवैध गिरफ्तारी से कोई लेना देना नहीं है. केन्द्र और राज्य में अलग अलग पार्टियों की सरकारें भले ही हो लेकिन दोनों की प्रवृति शोषण की है.