Ranchi-13 मई को पलामू संसदीय सीट पर मतदाताओं का फैसला मतपेटियों में कैद हो जायेगी. इस प्रकार अब महज चार दिन ही शेष है, और इसी चार दिनों में प्रत्याशियों को अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचानी है. कहा जा सकता है कि यह अंतिम दौर का प्रचार प्रसार है, जिसके बाद तस्वीर साफ-साफ उभरती दिखलाई पड़ने लगेगी और इस अंतिम दौर के प्रचार-प्रसार को धार देने के लिए खुद तेजस्वी यादव मोर्चा संभालने जा रहे हैं. आज छतरपुर और विश्रामपुर में तेजस्वी यादव की रैली होने वाली है. राजद की ओर से हजारों की भीड़ जुटने का दावा किया जा रहा है, दावा इस बात का भी है कि ममता भुइंया की जीत तय है, और विष्णु राम की तीसरी पारी पर विराम लगने वाला है. लेकिन राजद के इस दावे पर विचार करने के पहले यह भी जान लें कि वर्ष 2019 में विष्णुराम ने करीबन चार लाख मतों से जीत हासिल की थी, तब विष्णु राम को 62.46 फीसदी वोट मिले थें, जबकि उनके सामने मुकाबले में खड़े धुरन राम को महज 22.98 फीसदी मतों से संतोष करना पड़ा था, इसके पहले के मुकाबले में वर्ष 2014 में भी विष्णु राम ने करीबन ढाई लाख मतों से जीत हासिल की थी. उनके हिस्से में 48.76 वोट आये थें, जबकि मनोज कुमार को महज 21.75 मतों के साथ ही संतोष करना पड़ा था.
फिर राजद क्यों रहा है अपनी जीत की दावेदारी
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर वह आधार क्या है, जिसके बूते राजद जीत की हुंकार लगा रहा है. जबकि वर्ष 2014 हो या 2019 जीत-हार का अंतर ढाई लाख से चार लाख मतों का रहा है, क्या बीडी राम के खिलाफ एटीं इंकबैंसी की लहर है? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ये वोट बीडी राम के चेहरे पर मिले थें? या मतदाताओं ने पीएम मोदी के चेहरे पर अपनी मुहर लगायी थी. तो क्या पीएम मोदी का चेहरा इस बार काम नहीं कर रहा हैं? क्या खुद पीएम मोदी भी एंटी इनकंबेंसी शिकार है? क्या बिगत 10 वर्षों में एक भी भाषण, एक ही राग सुनने-सुनते मतदाताओं में उकताहट दिखलायी पड़ने लगी है? और क्या यह उकटाहट इतनी गहरी है, अब मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा अब पीएम मोदी से विमुख होकर युवा तेजस्वी में अपना भविष्य देखने लगा है? क्या तेजस्वी यादव का नौकरी वाला दांव झारखंड में भी चलने वाला है. इतना तो सही है कि तेजस्वी ने अपनी रैलियों के बूते बिहार की सियासी फिजा बदल दी है, एक तरफ पीएम मोदी-अमित शाह का दौरा, दर्जनों हेलिकाप्टरों का रात-दिन बिहार के आसमान पर उड़ते रहना और दूसरी तरफ एकलौता तेजस्वी का मोर्चा. लेकिन एकलौता तेजस्वी निश्चित रुप से पूरी सियासी फिजा को बदलता दिख रहा है, हालांकि तेजस्वी की यह कोशिश सीटों में कितनी बदलेगी, इसके लिए चार जून का इंतजार करना होगा.
पलामू में राजद का मजबूत जनाधार
लेकिन यदि बात हम पलामू की करें तो सियासी जानकारों का दावा है कि पलामू की धरती पर राजद का एक मजबूत जनाधार रहा है, सामाजिक समीकरण भी राजद के अनुकूल है. यह ठीक है कि वर्ष 2014 में जब राष्ट्रीय क्षितिज पर पीएम मोदी की इंट्री हुई, तो पीएम मोदी ने बड़ी चालकी के अति पिछड़ा कार्ड खेला, जिसके कारण अति पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ खड़ा हो गया, और वर्ष 2019 में स्थानीय मुद्दों से अधिक जोर फूलवामा अटैक था. फूलवामा अटैक के बाद राष्ट्रवाद की उस आंधी में पीएम मोदी की तमाम नाकामियां ओझल-सी हो गयी, एंटी इनकंबेंसी दफन हो गया, बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, दलित पिछड़ों की सामाजिक सियासी हिस्सेदारी का सवाल सब कुछ उस राष्ट्रवाद की आंधी में उड़ गया. लेकिन इस बार ना तो 2019 की सियासी फिजा है, और ना ही 2019 का राष्ट्रवाद की आंधी. पहली बार चुनाव जमीनी मुद्दों पर होता नजर आ रहा है, एक बार फिर से स्थानीय मुद्दों पर पूरी सियासी बिसात बिछती नजर आने लगी है. इस बीच जिस जोरदार तरीके से भाजपा ने चार सौ पार का नारा दिया, अब वही नारा उसके गले की फांस बनता दिखलायी देने लगा है. एक तरफ चार सौ पार का नारा और दूसरी तरफ संविधान बदले के दावे से दलित पिछड़ी जातियों में एक बेचैनी पसरती दिखलाई देने लगी है. इस बीच ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के बाद पीएम मोदी अब कांग्रेस पर मंगलसूत्र और दलित-पिछड़ों का आरक्षण मुसलमानों का देने का आरोप लगाते दिख रहे हैं, यानि उनकी पूरी चुनावी रणनीति 180 डिग्री कोण पर घूम चुकी है. और यदि पीएम मोदी को इस स्तर पर आकर बैटिंग करनी पड़ रही है, तो निश्चित रुप से उनके अंदर भी एक बेचैनी होगी.
क्या है पलामू का सामाजिक समीकरण
यहां याद रहे कि अनुमान के मुताबिक पलामू में भुइंया जाति-2.5-3 लाख, दास-1.5-2.5, मुस्लिम-2-3 लाख, यादव-1-2 लाख और राजपूत-50 हजार के आसपास है. इस हालत में तेजस्वी की कोशिश भूइंया जाति का 2.5 लाख, मुस्लिम-3 लाख, यादव 2 लाख को अपने पाले में खड़ा कर मजबूत सियासी बिसात बिछाने की होगी. यहां यह भी याद रहे कि इस बार पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा भी हाथी पर सवार होकर अखाड़े में हैं. इस हालत में कामेश्वर बैठा की इंट्री से दास मतदाता जो बसपा का कोर वोटर रहा है, और स्थानीय रणनीति के हिसाब से बीडी राम के चेहरे के कारण भाजपा के साथ खड़ा होता रहा है, में आंशिक सेंधमारी की स्थिति कायम होती है, तो इसका सीधा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है, हालांकि यह सेंधमारी कितनी होगी, पलामू में हार-जीत एक हद तक इस पर भी निर्भर करेगा.
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