रांची(RANCHI): हेमंत सरकार को एक के बाद एक राजनीतिक झटका मिलने की प्रक्रिया बदस्तूर जारी है. पहले स्थानीय नीति संबंधी विधेयक को वापस भेजा गया, अब महामहिम राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के द्वारा ओबीसी आरक्षण को भी बैरंग लौटा दिया गया.
राज्यपाल का फैसला, पिछड़ी जातियों के सपनों पर कुठाराधात
राज्यपाल के इस फैसले के साथ ही झारखंड की 55 की फीसदी आबादी वाले पिछड़ी जातियों को गहरा राजनीतिक सदमा लगा है. निश्चित रुप से राज्यपाल के इस फैसले के बाद सियासी पैंतरेबाजी की शुरुआत होने वाली है. झामुमो की कोशिश इस फैसले के बहाने भाजपा को घेरने की होगी, उसका दावा होगा कि केन्द्र की भाजपा सरकार के इशारे पर इस विधेयक को वापस लौटा दिया गया, और यह की केन्द्र सरकार का यह फैसला पिछड़ों के हितों की हकमारी है. जबकि भाजपा की कोशिश इस फैसले के बहाने हेमंत सरकार को घेरने की होगी. भाजपा हेमंत सरकार पर पिछड़ी जातियों को ठगने का आरोप लगायेगी.
अब राज्यपाल के फैसले पर होगी बहस
लेकिन इन सबके बीच अब राज्यपाल के उस फैसले पर भी बहस होगी, जिसको आधार बनाकर इस विधेयक को वापस लौटाया गया है. ध्यान रहे कि महामहिम राज्यपाल ने इस विधेयक को अटॉर्नी जनरल जनरल आर. वेंकटरमणी की टिप्पणी को आधार बनाते हुए लौटाया है, हेमंत सरकार के इस फैसले पर अटॉर्नी जनरल जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा है कि राज्य सरकार का यह फैसला इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है, इंदिरा साहनी मामले में कोर्ट ने आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी के अन्दर ही रखने का निर्देश दिया था.
Ews आरक्षण से खत्म हो चुकी है यह बंदिश!
लेकिन (Ews) सामान्य वर्ग को दिये जाने वाले 10 फीसदी आरक्षण के साथ ही इंदिरा साहनी में मामले में दिये गये आदेश को निष्प्रभावी कर दिया गया है. क्योंकि Ews आरक्षण के बाद कई राज्यों में आरक्षण का दायरा पहले ही 50 फीसदी को पार कर गया है, अब उस फैसले के आधार पर ओबीसी आरक्षण को लौटाना विवादों को न्योता देना है.
बाबूलाल मरांडी के सीएम रहते कम किया गया था ओबीसी आरक्षण
यहां भी ध्यान रखने की जरुरत है कि पहले भी संयुक्त बिहार में पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी का आरक्षण दिया जा रहा था, लेकिन झारखंड गठन होने के बाद बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार ने इसको 14 फीसदी करने का निर्णय लिया था, जबकि राज्य में पिछड़ों की आबादी एक अनुमान के अनुसार करीबन 55 फीसदी है. और भाजपा के इसी फैसले के बाद पिछड़ों के आरक्षण में कटौती कर दी गयी थी, अब जब केन्द्र में भाजपा की सरकार है, ओबीसी आरक्षण में विस्तार करने वाले विधेयक को लौटाया जा रहा है, साफ है कि हेमंत सरकार अब इसे राजनीतिक रुप से भुनाने का काम करेगी, भाजपा के लिए भी अब पिछड़ी जातियों के बीच अपनी छवि को लेकर मुश्किलें खड़ी होगी. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती आजसू के सामने होगी, क्या वह राज्यपाल के इस फैसले के साथ खड़ी रहेगी या ओबीसी आरक्षण के लिए अब वह सड़क पर उतर कर संघर्ष का रास्ता चुनेगी?