रांची(RANCHI)- मघ्य प्रदेश में एक आदिवासी युवक के सिर पर भाजपा कार्यकर्ता के द्वारा पेशाब करने के विरोध भाजपा कार्यालय का घेराव करने वाले प्रदर्शनकारियों को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल ने जमीन दलाल और गैर आदिवासियों की जमात बताया है.
हेमंत सोरेन का आवास घेरने की दी चुनौती
उन्होंने कहा है कि जब चाईबासा में पांच-पांच आदिवासियों की हत्या की गयी थी, तब क्या इनके मुंह में दही जम गया था ? गौ-तस्करों ने एसआई संध्या तोपनो को कुचलकर मार डाला, तब इनका आदिवासी प्रेम कहां गया था? मालिक के इशारे पर हल्ला-हंगामा करने वाले फर्जी आदिवासियों को जनता पहचानती है...जमीन दलाल कब से आदिवासियों के हितैषी हो गए?
राजपरिवार के चमचे?
मजाल है कि ये लोग रुबिका पहाड़िया की नृशंस हत्या पर किसी कार्यालय का घेराव करें ? मजाल है कि राजपरिवार के चमचे लोग दारोग़ा रूपा तिर्की की मौत के बाद भी उसकी इज़्ज़त पर कीचड़ उछालने वाले डीएसपी प्रमोद मिश्रा पर कारवाई के लिये आवाज़ उठाएं ?
— Babulal Marandi (@yourBabulal) July 8, 2023
चाईबासा में पांच-पांच आदिवासियों की…
बाबूलाल ने प्रदर्शनकारियों की नियत पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि मजाल है कि ये लोग रुबिका पहाड़िया की नृशंस हत्या पर किसी कार्यालय का घेराव करें ? मजाल है कि राजपरिवार के चमचे लोग दारोग़ा रूपा तिर्की की मौत के बाद भी उसकी इज़्ज़त पर कीचड़ उछालने वाले डीएसपी प्रमोद मिश्रा पर कारवाई के लिये आवाज़ उठाएं?
लोबिन हेम्ब्रम ने खोला मोर्चा
बाबूलाल के इस बयान के बाद आदिवासी समाज में आक्रोश देखा जा रहा है, विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं, अब तक अपनी ही सरकार के निशाने पर लेने के लिए बदनाम लोबिन हेम्ब्रम ने भी मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने कहा कि बाबूलाल लगातार इधर-उधर की बात कर रहे हैं. सीधा सवाल यह है कि क्या इस घटना से वह अपने आप को अपमानित महसूस नहीं कर रहे हैं? क्या उनके सीने में आग नहीं जल रही है? क्या पार्टी में रहने का मतलब पार्टी की गलत नीतियों और हरकतों की तरफदारी होती है?
लोबिन हेम्ब्रम गलत को गलत बोलता है
उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी को यह जानकारी होनी चाहिए कि लोबिन हेम्ब्रम झामुमो का एक वफादार सिपाही होने के बावजूद हर उस नीति का विरोध करता है, जो हमारे समाज के लिए घातक है, आदिवासी मूलवासियों के विरोध में नजर आता है, हम तो अपनी पार्टी में रहकर ही गलत नीतियों की मुखालफत करते हैं, सरकार को आईना दिखलाते हैं, यही बात बाबूलाल क्यों नहीं कर पाते? हमें पार्टी की चमचागीरी के बजाय आदिवासी-मूलवासियों के दुख सुख और अधिकारों के लिए संघर्ष तेज करना होगा. बाबूलाल से इस प्रकार के बयान की आशा आदिवासी-मूलवासी समाज नहीं करता था, निश्चित रुप से यह बयान आदिवासी समाज की भावनाओं को आहत पहुंचाने वाला है.