Patna-जिस जातीय जनगणना की तीर से सीएम नीतीश ने बिहार में भाजपा को बचाव की मुद्रा में खड़ा होने के विवश कर दिया और एक बारगी ही पूरा सामाजिक समीकरण अपने पक्ष में मोड़ लिया, लगता है कि सीएम नीतीश का वह तीर अब हाईजेक हो चुका है, और हाईजेक किसी और ने नहीं किया, बल्कि जिस विपक्षी एकता का सूत्रधार पर सीएम नीतीश ने इंडिया गठबंधन का खांचा तैयार किया था, उसी इंडिया गठबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक कांग्रेस ने यह कारनामा कर दिखलाया है. अब इस तीर का इस्मेताल कर कांग्रेस राज्य दर राज्य भाजपा को परेशान कर रही है.
जातीय जनगणना और पिछड़ा कार्ड कभी भी कांग्रेस का सियासी पिच नहीं रहा है
यहां ध्यान रहे कि जातीय जनगणना और आरक्षण कभी भी कांग्रेस का पिच नहीं रहा है, वह तो भाजपा के समान ही इससे बचती रही है, बल्कि यो कहें कि जातीय जनगणना और पिछड़ों की राजनीति की वह भी पीएम मोदी के समान ही देश को बांटने वाली हथियार मानती रही है, इसके विपरीत राजद सपा से लेकर जदयू और दूसरे क्षेत्रीय दलों का यह मुख्य सियासी हथियार रहा है. और इसी पिछड़ावाद की राजनीति पर सवार होकर मुलायम सिंह से लेकर लालू यादव ने पिछले तीन दशकों से यूपी बिहार में अपना सिक्का जमाये रखा है, और इन स्थानीय क्षत्रपों की उदय के बाद इन राज्यों में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया.
पिछले पांच बरसों से अपनी रणनीति बदलती दिख रही है कांग्रेस
लेकिन पिछले पांच वर्षों से कांग्रेस में एक बदलाव होता दिख रहा है, और वह भी इन क्षत्रपों के मुद्दे और भाषा में बात करती नजर आने लगी है, इसमें एक सबसे बड़ा मुद्दा जातीय जनगणना और पिछड़ों के आरक्षण विस्तार का है. यही कारण है कि राज्य दर राज्य कांग्रेस बेहद खुबसूरती से इस तीर का इस्तेमाल कर रही है. उसकी नयी रणनीति इस तीर के सहारे दलित पिछड़ा और अल्पसंख्यकों की जुगलबंदी तैयार भाजपा के हिन्दूत्व को भोथरा बनाने की है.
राजस्थान चुनाव में जातीय जनगणना की इंट्री
अब इसी तीर का इस्तेमाल कांग्रेस ने राजस्थान चुनाव में किया है, अब तक तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा राजस्थान में कांग्रेस पर बढ़त बनाये हुए है, लेकिन कांग्रेस ने एक वक्त पर अब इस चुनावी जंग में जातीय जनगणना की इंट्री करवा दी है, कांग्रेस ने दावा किया कि जैसे ही राजस्थान में उसकी सरकार बनती है, जातीय जनगणना करवा कर सभी सामाजिक समूहों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व दिया जायेगा, इसके साथ ही उनकी सामाजिक आर्थिक बेहतरी के लिए इस डाटा का इस्तेमाल कर रणनीति तैयार की जायेगी.
तीन दिसम्बर को पता चलेगा कितना कारगार रहा यह हथियार
अब देखना होगा कि सीएम नीतीश का यह मास्टर कार्ड राजस्थान में अपना जलबा दिखला पाता है या नहीं. या सिर्फ तीर हाथ में होने से कोई घायल नहीं होता, उसके लिए एक मंझा हुआ तीरंदाज की भी जरुरत होती है. क्योंकि यदि वाकई कांग्रेस और अशोक गहलोत की सरकार जातीय जनगणना के प्रति इतनी ही गंभीर होती तो वह सीएम नीतीश की तरह ही सत्ता में रहते हुए ही इसे अंजाम दे सकती है, लेकिन अब जबकि सत्ता से विदाई का वक्त है, यह तीर कितना कारगार होगा, इसका फैसला तो तीन दिसम्बर को ही होगा.
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