टीएनपी डेस्क: शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू होने वाली है. इस दिन से हर घर में मां दुर्गा विराजमान होने वाली है. इस दौरान 9 दिनों तक देवी मां के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा धूमधाम से की जाएगी. हिन्दू धर्म में शारदीय नवरात्रि का बड़ा महत्व है. शारदीय नवरात्रि के बाद से ही शारदीय त्योहार शुरू हो जाते हैं. लेकिन नवरात्रि से एक दिन पहले महालया मनाया जाता है. जिसके दूसरे दिन देवी के पहले रूप की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं कब है महालया और क्या है इसका महत्व.
महालया का महत्व
इस साल 2024 में महालया 2 अक्टूबर को है. कहा जाता है कि, महालया पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है, जिसे पितृ अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन पूर्वज पितृ लोक वापस लौट जाते हैं और जाने से पहले अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं. ऐसे में महालया पर खासकर पूरे विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. वहीं, महालया के दूसरे दिन से ही शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती है. कहा जाता है कि, शारदीय नवरात्र से पहले अगर महालया देवी धरती पर आगमन न करें तो देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा अर्चना संभव नहीं है. इसलिए नवरात्र शुरू होने से एक दिन पहले महालया मनाया जाता है. ऐसे में महालया को देवी को धरती पर आगमन करने का आमंत्रण देना भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि महालया के दिन ही देवी दुर्गा कैलाश से विदा लेकर धरती पर आगमन करती हैं. वहीं, महालया के बाद नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना कर पूरे 9 दिनों तक देवी की अलग-अलग रूपों की धूमधाम से पूजा की जाती है.
महालया अमावस्या का मुहूर्त 2024
2 अक्टूबर को पितृ पक्ष का अंतिम दिन यानी महालया अमावस्या मनाया जाएगा. इस दिन पितरों के श्राद्ध और तर्पण करने का बड़ा महत्व होता है. जिसके दूसरे दिन से ही शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाएगी. वहीं, महालया 1 अक्टूबर की रात 9 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो जाएगा और 2 अक्टूबर की देर रात 12 बजकर 18 मिनट पर खत्म हो जाएगा. ऐसे में महालया अमावस्या पर तीन मुहूर्त है. जिसमें पहला कुतुप मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक, दूसरा रौहिण मूहूर्त दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से लेकर 1 बजकर 21 मिनट तक और तीसरा अपराह्न काल में दोपहर 1 बजकर 21 से लेकर 3 बजकर 43 मिनट तक पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए शुभ होगा.
महालया अमावस्या पर क्या करें
महालया के दिन पितरों को जल अर्पित कर उनका श्राद्ध करना चाहिए.
गरीबों और जरूरतमंदों में वस्त्र, अन्न आदि का दान करना चाहिए.
इस दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए.