टीएनपी डेस्क(TNP DESK): झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सोरेन परिवार प्रदेश की राजनीति की धुरी बना हुआ है.मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के पहले हेमंत सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों और गठबंधन के साथियों से एक मार्मिक अपील भी किया है. इस अपील में चंपई सोरेन को नेता चुनने के साथ , हेमंत सोरेन ने लिखा है कि चलते-चलते यह भी अनुरोध करना है कि आप सब मेरी अनुपस्थिति में मेरे परिवार, मेरे पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन एवं माताश्री, जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. उनका भी ख्याल रखेंगे एवं मेरे छोटे भाई पर भी अपना स्नेह बनाए रखेंगे. इस अपील की लोग चर्चा कर रहे हैं.
शिबू सोरेन के संघर्ष को याद कर रहे हैं. धनबाद से शिबू सोरेन का गहरा लगाव बना हुआ है. वैसे शिबू सोरेन की कर्मस्थली धनबाद के टुंडी के लोगों को यह आज भी मलाल है कि वह लोग शिबू सोरेन को अपना प्रतिनिधि नहीं चुन सके. बता दें कि लाल, हरा झंडा की लड़ाई में शिबू सोरेन को अपनी राजनीतिक जन्मभूमि टुंडी को छोड़कर नया कर्म क्षेत्र दुमका को बनाना पड़ा था. शिबू सोरेन को जानने वाले लोग बताते हैं कि उन्होंने आंदोलन की शुरुआत हजारीबाग से की. फिर 1960 के दशक में टुंडी के पलमा चले आए और इसी उपेक्षित इलाके को अपना कर्म स्थल बनाया. महाजनी के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका. साथ ही साथ आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार के भी प्रयास करते रहे. उस समय पलमा की बनावट ऐसी थी कि वहां किसी को पहुंचना आसान नहीं था. शिबू सोरेन भूमिगत जीवन बिता रहे थे. क्षेत्र में सरकारी सुविधा नहीं के बराबर थी.
जानकार यह भी बताते हैं कि 1974 में धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त केवी सक्सेना ने पलमा में सभा की. और इस सभा में शिबू सोरेन भूमिगत जीवन छोड़कर प्रकट हुए. उन्हें सरकार से भरोसा मिला कि उनके खिलाफ के मामले वापस ले लिए जाएंगे. शिबू सोरेन के नजदीकी लोग बताते हैं कि सार्वजनिक जीवन में आने के बाद टुंडी से उन्होंने वर्ष 1977 में पहली बार चुनाव लड़ा. उनके सामने थे पूर्व मंत्री सत्यनारायण दुदानी (अब स्वर्गीय). चुनाव में सत्यनारायण दुदानी के हाथों शिबू सोरेन पराजित हो गए. उसके बाद वह टुंडी इलाका छोड़कर दुमका चले गए. दुमका में उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और इस क्षेत्र से चुनाव जीतने लगे. दुमका से चुनाव जीतकर केंद्रीय कोयला मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे.
2004 में पूर्व सांसद और चिंतक ए के राय (अब स्वर्गीय)ने एक साक्षात्कार में बताया था कि पलमा में आयोजित सभा सरकारी थी. यह सभा 1974 में हुई थी. सभा का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया था कि उस बैठक में आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता, नेता सहित काफी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे. यह बैठक सरकारी पहल पर आयोजित थी. मंच से यह घोषणा हुई थी कि मुक्ति आंदोलन से जुड़े मामलों को अब वापस ले लिया जाएगा .पूर्व सांसद ने बताया था कि यह निर्णय हुआ था कि बगैर हरवे हथियार से पुलिस बल और सरकारी अधिकारी जाएंगे और वह गए भी. उस सभा में भूमिगत जीवन छोड़कर शिबू सोरेन पहली बार प्रकट हुए. सरकारी मशीनरी आदिवासियों के जीवन का अध्ययन करने के लिए वहां रात भी गुजारी थी.यह पूरा कार्यक्रम शांतिपूर्ण हुआ. इस आशय की रिपोर्ट धनबाद जिला प्रशासन ने सरकार को भेजी.
तत्कालीन बिहार सरकार ने इस मामले से केंद्र सरकार को अवगत कराया. और उसके बाद तब की प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने बिहार के उस वक्त के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को पत्र लिखकर निर्देशित किया कि अत्याचार और जुल्म के चलते सामाजिक विषमता बढ़ रही है. इसे नियंत्रित किया जाए. और जो समस्याएं हैं उनका निराकरण स्थल पर ही कर दिया जाए. पूर्व सांसद ने बताया था कि उस समय वह विधायक थे और पत्र को पढ़ा था.इधर, बुधवार को हेमंत सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों और गठबंधन के साथियों से दिशोम गुरु शिबू सोरेन के स्वास्थ्य का ख्याल रखने की अपील कर शिबू सोरेन के आंदोलन और उनकी त्याग और तपस्या को जीवंत कर दिया है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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