Ranchi- एक तरफ राज्य सरकार रोजगार के मोर्चे परचम फहराने का दावा कर रही है, विभिन्न विभागों से निकाले गये विज्ञापनों का हवाला देते हुए इस बात का दावा किया जा रहा है कि झारखंड गठन के बाद पहली बार किसी सरकार ने युवाओं का किस्मत संवारने की कोई गंभीर पहल की है. विज्ञापनों का प्रकाशन किया जा रहा है, और सिर्फ विज्ञापन ही नहीं निकाले जा रहें है, बल्कि उन विज्ञापनों को उसके अंतिम अंजाम तक पहुंचाया भी जा रहा है, सरकार की पहल सिर्फ यहीं नहीं रुक रही है, देश की नामचीन कंपनियों के साथ मिलकर अलग-अलग जिलों में रोजगार मेलों का आयोजन भी करवाया जा रहा है और युवाओं को राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय कंपनियों में अपना भविष्य संवारने का अवसर प्रदान किया जा रहा है, अच्छी खासी पैकेज पर नौकरियां प्रदान की जा रही है.
विभिन्न विभागों और निजी कंपनियों के द्वारा रोजगार मेला का आयोजन
श्रम और नियोजन मंत्री सत्यानंद भोक्ता, जिनके कंधों पर युवाओं को रोजगार प्रदान करने अहम जिम्मेवारी है, अक्सर इन आयोजनों में वह युवाओं को रोजगार के हसीन सपनें दिखलाते दिख रहे हैं, इस बात का दावा कर रहे हैं कि राज्य की हेमंत सरकार की पहली प्राथमिकता युवाओं का भविष्य संवारना की है, और यदि नियुक्तियों की यही रफ्तार रही है तो आने वाले महज चंद वर्षों में ही झारखंड को बेरोजगारी के इस दंश को मुक्त कर दिया जायेगा.
क्या है उन दावों की जमीनी सच्चाई
लेकिन राज्य में रोजगार का संकट और सरकार के दावों की कलई उस वक्त खुल जाती है जब खुद श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता के बेटे को चपरासी की नौकरी करनी पड़ती है. जी हां, चौंकिये मत, यह कोई अफवाह नहीं है, बल्कि जीती जागती सच्चाई है. श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता के बेटे मुकेश भोक्ता की नियुक्ति चपरासी के पद पर हुई है. चतरा जिला सेशन जज के द्वारा जारी सूची में सत्यानंद के बेटे मुकेश कुमार भोक्ता का भी शामिल है.
सवाल मुकेश भोक्ता की नियुक्ति पर नहीं, युवाओं के बीच गहराते रोजगार के संकट का है
हालांकि मुकेश भोक्ता की नियुक्ति पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता और ना ही किया जा रहा है, सवाल तो राज्य में व्याप्त बेरोजगारी के दंश का है. रोजगार के संकट का है, मंत्री जी के बेटे को तो निश्चित रुप से समाज के दूसरे लोगों की तुलना में उच्च और बेहतरीन शिक्षा मिली होगी, उनकी परवरिश भी दूसरे युवाओं के तुलना में आला दर्जे की हुई होगी, बावजूद इसके यदि मुकेश को चपरासी की नौकरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है, तो यह राज्य सरकार और खुद श्रम मंत्री सत्यानंद के भोक्ता के उन तमाम दावों पर सवालिया निशान खड़ा करता है, जब उन्ही के बेटे को चपरासी की नौकरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है तो राज्य के दूसरे युवाओं की दशा क्या होगी.
क्या अब चपरासी की नौकरी पर भी मंत्रियों के बेटे की रहेगी नजर
सवाल तो यह भी खड़ा किया जा सकता है कि जिस चपरासी,अर्दली और दूसरी चतुर्थ वर्गीय नौकरियों पर समाज के अभिवंचित वर्गों की नजर रहती थी, ताकि उन्हे किसी विशेष प्रतियोगिता का सामना नहीं करना पड़े, अब वह नौकरियां भी मंत्री और अधिकारियों के बेटे के हिस्से में जायेगी, तब राज्य के सामान्य युवा क्या करेंगे. इसके बाद तो रोजगार की तलाश में सड़क पर भटकते युवाओं का दर्द और भी अंधकारमय हो जायेगा.
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