Ranchi- 2023 से शुरु हुआ ईडी की दुश्वारियों का सफर 2024 में अपनी उंचाईयों को छूता नजर आने लगा है. उसका खौफ, डर और इकबाल अब डोलता नजर आ रहा है, ईडी के समन को अब गंभीरता से लेने के बजाय उसकी तोड़ खोजने की होड़ मची दिख रही है. एक के बाद दूसरे राजनेता अब ईडी के समन को रद्दी को टोकरी में फेंक कर उसका सियासी मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हो, या उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव या फिर हेमंत सोरेन. आज कोई भी ईडी के बुलावे पर हाजिरी लगाने को तैयार नहीं है.
ईडी अधिकारियों पर रिश्वत लेने का आरोप
दूसरी ओर ईडी के अधिकारियों के खिलाफ विभिन्न मामले भी दर्ज किये जा रहे हैं, तमिलनाडू में डायरेक्टोरेट ऑफ विजिलेंस एंड एंटी-करप्शन (DVAC) के अधिकारियों ने बाजाप्ता ईडी कार्यालय की तलाशी भी ली. इसके साथ ही अंकित तिवारी नामक एक ईडी अधिकारी को गिरफ्तार भी कर लिया, अंकित तिवारी पर भयादोहन कर 20 लाख की वसूली करने का आरोप है. कुछ इसी तरह की खबर राजस्थान से भी आयी थी. जहां एसीबी ने नवल किशोर मीणा नामक ईडी अधिकारी और उसके सहयोगी एक बाबूलाल मीणा 15 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया था.
ईडी अधिकारियों के साथ पिटाई
तो दूसरी तरफ ईडी अधिकारियों के साथ पिटाई की खबर भी आ रही है. बंगाल से तो इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आ चुकी है. अभी चंद दिन पहले ही सारदा चिट फंड की जांच में हुगली पहुंचे अधिकारियो के साथ मार पीट की खबर आयी है, अब ईडी अधिकारी अस्पताल से अपनी शिकायत दर्ज करवा रहे हैं, साफ है कि ईडी की शिकायत पर इस मामले की जांच तो राज्य के अधिकारी ही करेंगे. इसके पहले कथित रोज़ वैली और सारदा पोंजी घोटाले के सिलसिले में कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के पूछताछ करने पहुंचे सीबीआई अधिकारियों को भी स्थानीय पुलिस के द्वारा हिरासत में ले लिया गया था, जिसके बाद सीबीआई की पूरे देश में फजीहत हुई थी.
झारखंड सरकार का बड़ा फैसला
अब उसी कड़ी में झारखंड कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला किया है. इस फैसले के अनुसार राज्य कर्मियों को ईडी के समन पर हाजिरी लगाने से पहले राज्य सरकार को इसकी सूचना देनी होगी. शायद झारखंड पूरे देश का एकलौता ऐसा राज्य है, जिसने इस तरह का फैसला किया है. हालांकि इस फैसले में कहीं से ईडी की चर्चा नहीं की गयी है, लेकिन राज्य के बाहर के एजेसियों के द्वारा किसी भी समन का जवाब देने से पहले अपने संबंधित विभाग को इसकी पूर्व सूचना देने का आदेश दिया गया है. साफ है कि राज्य सरकार का ईडी के दांत को भोथरा करना चाहती है, या दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार ने अपने कर्मियों को अभयदान देने की काट खोज ली है, अब यदि राज्य सरकार के द्वारा संबंधित अधिकारी को ईडी के पास जाने की अनुमति नहीं मिलेगी, तो उस अधिकारी के पास ईडी के सामने अपना बचाव करने का एक तर्क होगा. वह राज्य सरकार के फैसले की दुहाई दे सकती है, दूसरी तरफ राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि उसके साथ राज्य सरकार पूरी मुस्तैदी के साथ खड़ी है, और यदि आप दोषी है, तो इसका फैसला करने में राज्य की एंजेसियां सक्षम है. लेकिन ईडी को सामने कर विपक्षी दलों के द्वारा शासित राज्यों में जिस भय का वातारवरण पैदा किया जा रहा है, वह उसका मुकाबला करने को तैयार है.
सीएम हेमंत ने दीदी से सीखा ईडी का काट
तो क्या यह मान जाय कि सीएम हेमंत ने ममता दीदी के ईडी का काट सीख लिया है, और वह जान चुके हैं कि ईडी का मुकाबला कानूनी तरीके से करने में समय की बर्बादी के ज्यादा आसान है कि इसे ईडी के इस आतंक को अपने समर्थक समूहों तक पहुंचाया जाय. ताकि मुकाबला सियासी हो, बहुत संभव है कि रास्ता बंगाल से मिला हो. वैसे भी सीएम हेमंत और दूसरे विपक्षी दल यह समझ चुके हैं कि अब चुनाव की रणभेरी बजने ही वाली है, जनता की अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी करने का वक्त आ गया है. अब इन एजेंसियों के घबराने के बजाय टकराने की जरुरत है, और यही सियासी तौर पर उन्हे मजबूत करेगा, क्योंकि एक बात तो साफ है कि अब जनता भी ईडी की इन गतिविधियों पर सवाल उठाने लगी है, यह सवाल पूछा जाने लगा है कि आखिर ईडी की यह तेजी विपक्षी शासित राज्यों में ही क्यों होती है. जहां जहां भाजपा की सरकार है, उसके भ्रष्टाचार पर ईडी खामोशी क्यों बरतती है. सबसे चर्चित मामला को मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले का है, जहां ना जाने कितने गवाहों और आरोपियों की मौत हुई, करोड़ों की हेराफेरी का मामला आया, लेकिन आज तक कोई नतीजा नहीं निकला, शिवराज सिंह चौहान के किसी भी मंत्रिमंडल सहयोगी को निशाना नहीं बनाया गया, शिवराज सिंह को कभी भी ईडी का तलब नहीं मिला. कुछ ऐसी ही कहानी दूसरे भाजपा शासित राज्यों की भी है.
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