पटना(PATNA): भले ही 2024 के लोकसभा चुनाव अभी कुछ दूर हो लेकर, लेकिन बिहार में इसकी आगाज हो चुकी है, एनडीए और यूपीए दोनों ही इसकी तैयारियों में जुट गया है, अपने-अपने आधार मतों का धुर्वीकरण की कोशिश शुरु हो चुकी है. जहां महागठबंधन पूर्णिया में अपनी शक्ति का नुमाइश कर रहा है, वहीं पूर्णिया से चार सौ किलोमीटर दूर पश्चिम चंपारण के लौरिया से अमित शाह सीएम नीतीश पर निशाना साध रहे हैं.
भारी भीड़ को देख गदगद हुए लालू
पूर्णिया में महागठबंधन की रैली को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए लालू यादव ने आरएसएस को निशाने पर लिया, उन्होंने कहा कि भाजपा कोई राजनीतिक पार्टी नहीं होकर सिर्फ आरएसएस का मुखौटा है, भारी भीड़ को देख गदगद लालू यादव ने कहा कि यह भीड़ बताती है कि भाजपा का 2024 के लोकसभा के चुनाव में क्या हाल होने वाला है. अब हम और नीतीश साथ हो गये हैं और साथ ही रहेंगे, अब पूरे देश से नरेन्द्र मोदी की विदाई वक्त आ गया है.
एक ही सपना भाजपा को उखाड़ फेंकने का-नीतीश
जबकि सीएम नीतीश ने अपने पुराने दावे को दुहराता हुए कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 100 सीटें भी नहीं आने वाली है. इनके दिन अब पूरे हो चुके हैं. अब हमारी एक ही ख्वाहिश है, वह है भाजपा को उखाड़ फेंकने का, भाजपा के आरोपों पर प्रहार करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि कहा जाता है कि हमने जार्ज साहब को छोड़ दिया, शरद यादव का साथ नहीं दिया, इस मंच पर शरद जी के बेटे बैठे हैं, जार्ज साहब का भी हमने हमेशा ख्याल रखा. इसके साथ ही सीएम नीतीश ने कांग्रेस से भी अपना स्टैंड साफ करने को कहा.
हर तीन साल में नीतीश को पीम पद का सपना आता है
जबकि पश्चिम चंपारण में नीतीश कुमार को निशाने पर लेत हुए अमित शाह ने कहा कि नीतीश बाबू को हर तीन साल में प्रधानमंत्री बनने का सपना आता है, हमने तो उन्हे सीएम बनाया था, लेकिन उनके अन्दर पीएम की बनने की तड़प पैदा हो गयी है, यही कारण है कि वह विकास की राजनीति को छोड़ अब अवसरवाद की राजनीति पर सवार हो गये हैं.
अल्पसंख्यक मतों में सेंधमारी को रोकने की कोशिश
दरअसल दोनों की खेमों की कोशिश 2024 के पहले ही बिहार में एक माहौल तैयार करने की है, पूर्णिया की रैली इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि यह अल्पसंख्यक बहुल इलाका है, इस इलाके में राजद की पकड़ काफी अच्छी माना जाती है. और यह राजद का आधार वोट भी रहा है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस इलाके में उसकी पकड़ कमजोर हुई है. खास कर बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के परिवार से राजद की बन नहीं रही है और फिर हर चुनाव के पहले इस इलाके में असदुद्दीन ओवैसी का प्रवेश हो जाता है, जिसके कारण मुस्लिम मत विभाजन भी होता है, इसका सीधा लाभ भाजपा को होता है, राजद अल्पसंख्य मतों के बीच ओवैसी की सेंधमारी को रोकना चाहती है. इसके साथ ही वह पूरे बिहार में अपनी ताकत को प्रर्दशन भी चाहती है, ताकि बिहार के दूसरे हिस्सों में महागठबंधन के समर्थकों के बीच राजनीतिक उत्साह और जोश बरकरार रहे.
भाजपा के पास कोई बड़ा पार्टनर नहीं
वहीं नीतीश कुमार के साथ छोड़ने के बाद भाजपा के पास कोई बड़ा पार्टनर नहीं रह गया है, हालांकि उसके द्वारा इसके कई प्रयास किये गये हैं, लेकिन अब तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है. भाजपा की पहली कोशिश आरसीपी सिंह के माध्यम से जदयू को कमजोर करने की थी, लेकिन जदयू ने समय रहते आरसीपी सिंह को बाहर का रास्ता दिखला दिया, ठीक यही उपेन्द्र कुशवाहा की हुई, इसके बावजूद भाजपा को चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस का साथ मिला है, लेकिन परेशानी यह है कि चिराग हो या उपेन्द्र कुशवाहा दोनों की चाहत सीएम पद की है, और भाजपा अब किसी दूसरी पार्टी से किसी को सीएम का चेहरा बनाने की इच्छुक नहीं है, साफ है कि फिलहाल भाजपा को मजबूत सहयोगियों की कमी है, सिर्फ उपेन्द्र कुशवाहा, चिराग के भरोसे पर बिहार की इस जंग को फतह नहीं कर सकती. यही कारण है कि अमित शाह रह रह कर बिहार का दौरा करते रहते हैं, उनकी कोशिश किसी प्रकार से बिहार में 2019 के परिणाम को दुहारना है, लेकिन जिस प्रकार महागठबंधन अभी एकजुट नजर आ रहा है, भाजपा को अभी लम्बी लड़ाई और तैयारी करनी होगी.
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