बूढ़ी हड्डियां मांग रही है कम से कम दस हज़ार पेंशन , क्या है मामला आप भी जानिए


धनबाद (DHANBAD): कोयला उद्योग से अवकाश ग्रहण करने वाले कोल कर्मी और अधिकारियों में जबरदस्त आक्रोश है. उनका कहना है कि अब वह जीवन के चौथे पड़ाव पर आ गए हैं, लेकिन जब तक जान है,आंदोलन करेंगे और सरकार को बताएंगे कि हड्डियां बूढ़ी हो गई हैं, लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं है. जरूरत पड़ी तो जंतर-मंतर तक जाएंगे ,जरूरत पड़ी तो आत्मदाह कर लेंगे.
उन्हें मालूम है कि दो-तीन सौ लोगों के आत्मदाह कर लेने से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इतिहास जरूर बन जाएगा. हमारी मांगे नहीं मानी गई तो हम इतिहास बनाने को विवश होंगे. कोल पेंशनर्स एसोसिएशन के सचिव एस के मधु ने कहा कि कोयला उद्योग की पेंशन नीति देश के अन्य किसी उद्योग की पेंशन नीति से मेल नहीं खाती है. प्रकृति के खिलाफ जाकर हम कोयला उत्पादन करते हैं, जान जोखिम में डालते हैं फिर भी हमें उचित पेंशन नहीं मिलती है. आज हम लोगों की मेहनत से ही देश की 75% ऊर्जा जरूरत की पूर्ति होती है लेकिन उनका तनिक ख्याल नहीं रखा जा रहा है. वही, पेंशनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एसएन सिंह ने कहा कि सरकार ने राज्यसभा में कोल पेंशनर्स को लेकर जो जवाब दिया है, उसे हम काफी क्षुब्ध है.
आज की तारीख में भी कहीं 75 तो कहीं 400 से ₹500 पेंशन है. ऊपर से सरकार कहती है कि इसमें संशोधन हम नहीं करेंगे, कोल पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रामानुज प्रसाद ने कहा कि सरकार पिक एंड चूज की नीति से काम कर रही है. पहले लोगों का बेसिक कम था इसलिए पेंशन कम निर्धारित हुई. पेंशन के साथ डीए को नहीं जोड़ा गया है ,इसलिए अभी मिनिमम पेंशन ₹49 है. उन लोगों की मांग है कि कम से कम ₹10000 पेंशन निर्धारित किया जाये. इसके खिलाफ 17 अक्टूबर को कोल माइन्स प्रोविडेंट फंड कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन करेंगे. इसके बाद भी अगर सरकार नहीं मानी तो आगे आंदोलन तेज करेंगे.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह के साथ प्रकाश
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