टीएनपी डेस्क (Tnp desk):-लोकसभा चुनाव चुनाव दहलीज पर है, कुछ महीनों बाद मतदाता अपने मत का इस्तेमाल भी अगली सरकार चुनने के लिए करेगी. इससे पहले जात-पात, मजहब की सियासत भी हो रही है. बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े आने के बाद तो मानो लगता है कि समीकरण ही पलट गया हो, सियासत में करवट होने वाली है. अब तो आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी का नारा बुलंद होना लगा है.
ओबीसी को रिझाने की कवायद
सभी दल अपनी-अपनी खिचड़ी वोट बटोरने के लिए पका रहे हैं. हालांकि, जातिय जनगणना के आंकड़े आने के बाद एक सोच तो पैदा हो ही गई है.खासकर, ओबीसी को लेकर सभी अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहें है. सब उनके वोट को ही अपने पाले में लाने की कवायद में जशीले तकरीरें भर रहे हैं. हालांकि, जमीनी सच्चाई पर गौर फरमाएं तो ओबीसी में भी अगड़े और पिछड़ी की लड़ाई से ही सबकुछ तय होगी. दरअसल, पिछड़ी जातियों का रुझान विशेषतौर पर राष्ट्रीय दलों के साथ रहा है. वही, इस वोटबैंक की लड़ाई में भाजपा और कांग्रेस के बीच भी टक्कर होती है . लेकिन, बीजेपी जीतती हुई दिखाई पड़ती है, क्योंकि 65 प्रतिशत वोट भाजपा के खाते में जाती है.
पीएम मोदी के आने के बाद बदला समीकरण
भाजपा को अगड़ी जातियों की पार्टी मानी जाती रही है. लेकिन, 2014 के बाद समीकरण बदल गये. अगड़ी जातियों के साथ-साथ ओबीसी की पार्टी भी बीजेपी बन गई है. हाल ही में गृह मंत्रि अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ये गिनाया भी था कि मौजूदा पार्टी के 303 सांसदो में 85 ओबीसी वर्ग से हैं. यही हाल विधानसभाओं और विधानपरिषद में भी हैं. जहां 30 प्रतिशत ओबीसी विधायक हैं. देखा जाए तो केन्द्र में भाजपा की सत्ता में आने के बाद ओबीसी समर्थकों की संख्या में इजाफा हुआ है.
2014 के बाद भाजपा की तरफ ओबीसी समर्थकों का झुकाव
सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, सबसे दिलचस्प बात ये देखने को ये मिली कि 2014 में पहली बार बीजेपी में ओबीसी समर्थकों का रुझान देखा गया, जहां 10 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई. इसके बाद 2019 मे फिर 10 फीसदी का अचानक उछाल देखने को मिला, जो 44 प्रतिशत तक पहुंचा और अभी 45 तक आ गया है. इधर, भाजपा की प्रतिदवंद्वी कांग्रेस 2014 से पहले ओबीसी के समर्थन के मामले में टक्कर दे रही थी. लेकिन, 2014 के बाद लगातार पिछड़ती गई, 2014 से 2019 तक सिर्फ 15 फीसदी ही ओबीसी समर्थन पार्टी को दिया.
ओबीसी की सियासत को लेकर बेशक अभी सभी दल अपनी डफली और अपनी राग अलाप रहें हैं. लेकिन, जो सीएसडीएस का मई 2023 का आकलन बताता है, कि सीधी लड़ाई में भाजपा को 72 प्रतिशत ओबीसी वोट मिल सकता है. भाजपा औऱ कांग्रेस में सीधी लड़ाई राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश में देखने को मिलती है. इस बार I.N.D.I.A गठबंधन की कोशिश ओबीसी के वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की होगी. बिहार में जातिय जनगणना पर शोर मचाया जा रहा है. लेकिन, सच्चाई यही है कि बिहार में भी लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ही ओबीसी की पसंदिदा पार्टी रही है.
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