टीएनपी डेस्क : सावन का पवित्र महिना शुरू हो चुका है. ऐसे में शिवालयों में शिव भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. इस पवित्र महीने में शिव भक्त अपने आराध्य को मनाने के लिए भगवान शिव के खास तीर्थ स्थलों का दर्शन करेंगें. ऐसे खास मौके पर 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना भाग्यशाली माना जाता है. इनके दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे दुख कष्ट दूर हो जाते हैं. 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वेश्वर (विश्वनाथ), त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुष्मेश्वर (घृष्णेश्वर) शामिल हैं. इसलिए सावन के इस पवित्र महीने में हम आपको बताने वाले हैं भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों व उनके इतिहास और मान्यताओं के बारे में.
क्यों कहा जाता है ज्योतिर्लिंग
कहा जाता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव ज्योति के रूप में विराजमान हैं. इसलिए इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. वहीं, इसकी उत्पत्ति को लेकर कई प्रथाएं भी प्रचलित है. एक कथा में कहा गया है कि, पृथ्वी पर 12 जगहों में भगवान शिव द्वारा दर्शन देने के बाद ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति हुई. तो वहीं, शिव पुराण में ऐसा कहा गया है कि, भगवान विष्णु व ब्रम्हा के बीच दोनों में कौन सर्वश्रेष्ठ है पर विवाद चल रहा था, जिसे रोकने के लिए भगवान शिव को ज्योतिर्लिंग का रूप धारण करना पड़ा. जिसके बाद ब्रह्माजी और विष्णुजी दोनों में से कोई भी इस ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं देख पाएं, क्योंकि इस ज्योतिर्लिंग की न तो शुरुआत थी और न ही कोई अंत. इस के बाद ही दोनों भगवान विष्णु व ब्रम्हा ने यह ते किया की उनसे ज्यादा सर्वश्रेष्ठ यह ज्योतिर्लिंग है, जिसके बाद से ही पृथ्वी पर भगवान भोलेनाथ ज्योति के रूप में 12 जगहों पर विराजमान हुए. आज हम आपको बताने वाले हैं भगवान शिव के पहले ज्योति रूप सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी मान्यता और उसके इतिहास के बारे में.
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में समुद्र तट के किनारे स्थित भव्य सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग स्थित है. बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पहला और सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है. मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है, इंसान पाप मुक्त हो जाता है और सारे रोग कष्ट दुखों से मुक्ति मिल जाती है. हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक सोमनाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा करने और दर्शन करने आते हैं. भगवान शिव को समर्पित इस धार्मिक स्थल का इतिहास, धार्मिक महत्व, और वास्तुकला इसे एक विशेष स्थान बनाते हैं.
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी कहानियां
प्रचलित पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि, दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्र देव से करवाया था. लेकिन चंद्र देव अपनी 27 पत्नियों में से केवल रोहिणी से विशेष प्रेम करते थे, जिससे दुखी होकर चंद्र देव की अन्य पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से इस बात की शिकायत कर दी. जिसके बाद दक्ष प्रजापति ने चंद्र देव को उनकी रोशनी को धीरे-धीरे क्षीण जाने का श्राप दे दिया. कहा जाता है कि भगवान ब्रम्हा कि सलाह पर चंद्र देव श्राप से मुक्ति पाने के लिए सोमनाथ आए थे और भगवान शिव की उपासना की थी. चंद्र देव के उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्र देव के श्राप को आंशिक कर उन्हें वरदान दिया की उनकी रोशनी पहले धीरे-धीरे कम होगी और फिर बढ़ेगी. भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद चंद्र देव ने सोमनाथ में भगवान शिव की एक ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया.
मंदिर का इतिहास
विश्व विख्यात सोमनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. कई बार नष्ट होने के बाद भी इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया गया. 1024 ईसा पूर्व में महमूद गजनवी से लेकर 1296 में अलाउद्दीन खिलजी व 1701 में मुगल सम्राट औरंगजेब तक ने इस मंदिर को लूटने के साथ साथ इसे नष्ट भी कर दिया था. जिसके बाद भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया.
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