टीएनपी डेस्क(TNP DESK): छठ महापर्व को बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में काफी धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि, महापर्व को अब देश समेत विदेशों में भी मनाया जाता है. बता दें कि चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय (कद्दू भात) से शुरु होता है और चौथे दिन सुबह के अर्घय के साथ खत्म हो जाता है. महापर्व का आज दूसरा दिन इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है. आज के दिन को खरना क्यों कहा जाता है और इसका महत्व क्या है. चलिए बताते हैं इस स्टोरी में.
चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहते हैं. इस दिन व्रती दिन भर निर्जला व्रत करती हैं और छठी मैया का प्रसाद बनाती है. खरना के दिन गुड़ का खीर बनता है. सबसे खास बात यह है कि खीर मिट्टी के बने चुल्हे में तैयार किया जाता है. शाम होते ही व्रती सबसे पहले प्रसाद ग्रहण करती है फिर इसे सभी के बीच में बांटा जाता है. आपको बता दें कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने के लिए लोग कई किलोमीटर दूर से आते हैं. इस प्रसाद का काफी महत्व है और लोग इसे बड़ी साफ-सफाई के साथ बनाते हैं. छठ पूजा के दौरान खरना के दिन भी सूर्य भगवान का पूजा किया जाता है.
तीसरे और चौथे दिन दिया जाता है भगवान सूर्य को अर्घ्य
छठ महापर्व के तीसरे दिन व्रती या भक्त शाम को तालाब या घाट पहुंचती हैं और ड़ूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. वहीं, चौथे दिन व्रती सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं और पानी में खड़े रहते हैं. इसके बाद सूर्यादय के दौरान भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दौरान व्रती सूर्य देवता और छठी मैया के गीत भी गाती हैं. छठ के पर्व की रौनक हर तरफ देखी जा सकती है. सूर्य डूबने पर व्रती पीतल के कलश में दूध और जल से सूर्य को अर्घ्य देते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं.
छठ पूजा का महत्व
मान्यता है कि छठ पूजा मुख्य तौर पर संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए होती है. साथ ही घर की सुख-शांति और समृद्धि के लिए भी यह पूजा की जाती है. बता दें कि छठ महापर्व हिन्दू के अलावा मुस्लिम परिवार के लोग भी करते हैं
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