टीएनपी डेस्क : कहते हैं कि भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे को अपना आराध्य मानते हैं. ऐसे में जहां शिव का वास होता है वहां श्री हरि का वास भी होता ही है. ऐसा ही कुछ गुजरात में है. गुजरात के द्वारका में जहां श्री हरि कृष्ण के रूप में पूजे जाते हैं तो वहीं द्वारकापुरी से लगभग 15 से 17 किलोमीटर की दूरी पर भगवान शिव नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं. भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में 10वां ज्योतिर्लिंग नागेश्वर गुजरात में ही स्थित है. वहीं, पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ भी गुजरात में ही है. भगवान शिव का यह दसवां ज्योतिर्लिंग बड़ा ही खास है. गले में वासुकी नाग को धारण करने वाले भगवान शिव नागों के देवता भी कहे जाते हैं. ऐसे में इस नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और क्यों इसका नाम नागेश्वर ही रखा गया पढिए इस आर्टिकल में.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सुप्रिय नाम का एक व्यापारी भगवान शिव को अपना आराध्य मानता था. प्रतिदिन शिवलिंग बना भगवान शिव की पूजा किया करता था. वहीं, दारुका नाम का एक असुर, शिव भक्तों को प्रताड़ित करता था. एक दिन दारुका की नजर सुप्रिय पर पड़ी, जो प्रतिदिन की तरह अपने आराध्य की पूजा में लीन था. सुप्रिय को भगवन शिव की पूजा करता देख दारुका उसे मारना चाहता था. ऐसे में दारुका सुप्रिय को प्रताड़ित करने लगा. लेकिन असुर की यातनाओं को सहते हुए सुप्रिय केवल भगवान शिव का नाम जपता रहा. सुप्रिय द्वारा कष्ट में भी उसकी भक्ति को देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने भक्त की जान बचाने के लिए प्रकट हो गए और असुर का वध कर दिया. असुर के वध के बाद सुप्रिय ने भगवान शिव से वहीं वास करने की विनती करने लगा. ऐसे में भगवान शिव वहां ज्योति के रूप में विराजित हो गए. इसके बाद से ही भगवान शिव को ‘दारुकावने नागेशं' भी कहा जाता है.
ऐसे पड़ा नाम
पुराणों में ऐसा कहा गया है कि, भगवान शिव और माता पार्वती यहां नाग के रूप में प्रकट हुए थे. जिसके बाद ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर रखा गया.
पांडवों से भी जुड़ी है कहानी
ऐसा कहा जाता है कि, द्वापर युग में अपना वनवास काटने के समय में पांडव इस क्षेत्र में आए थे. ऐसे में भ्रमण करते हुए भीम ने एक तालाब देखा जहां गाय अपना दूध तालाब में दे रही थी. उत्सुकतापूर्वक भीम ने जब तालाब के समीप जाकर देखा तो हैरान हो गए. तालाब में एक शिवलिंग था जिसपर गौ माता अपना दूध चढ़ा रही थी. वहीं, श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया कि यह शिवलिंग कोई आम नहीं बल्कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के नाम से पूजा जाता है. श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर पांडवों ने तालाब का पानी खाली किया और फिर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व
ऐसी मान्यता है कि, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इतना ही नहीं, अगर किसी की कुंडली में सर्पदोष या कालदोष हो तो सच्चे मन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने व धातुओं से बने नाग नागिन अर्पित करने से कुंडली का सारा दोष दूर हो जाता है. सावन में विशेषकर यहां पर भक्त विशेष पूजा अर्चना करते हैं. ताकि उन्हें रोग, कष्ट और पापों से मुक्ति मिल जाएं.
Disclaimer : इस आर्टिकल में लिखी गई सारी बातें मान्यताओं और ग्रंथों पर आधारित है. इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई लेना देना नहीं है.
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