टीएनपी डेस्क(TNP DESK): सावन के पावन महीने में भक्त बाबा भोलेनाथ की भक्ति में डूबे रहते है. और बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. सावन का पूरा महीना भगवान भोले शंकर को समर्पित होता है. जिसको देखते हुए पूरे महीने बाबा के भक्त झारखंड के देवघर स्थित महान ज्योतिर्लिंग में जलार्पण करने देश-विदेश से आते हैं. भगवान भोले शंकर सृष्टि के रचयिता माने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि शिव अगर अपने तीसरी आंख को खोल दे, तो उससे पूरे ब्राह्माण्ड में प्रलय मच जाएगा.
सावन में जरुर करें गुजरात के इस मंदिर के दर्शन
देवघर के बाबा मंदिर के बारे में तो सभी ने सुना होगा, लेकिन आज हम आपको भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसको सुनकर आपकी आस्था भगवान भोलेनाथ के प्रति और बढ़ जाएगी. ये मंदिर गुजरात के वडोदरा में स्थित है. इस मंदिर के बारे में बहुत बड़ी मान्यता है, तो वहीं इस मंदिर का जिक्र शिवपुराण में भी देखने को मिलता है. आज हम आपको इस आर्टिकल में स्तंभेश्वर मंदिर के बारे में पूरे विस्तार से बताएंगे.
गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर में शिवजी साक्षात विराजमान हैं
आपको बताये कि गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर में शिवजी साक्षात विराजमान रहते हैं. तो वहीं बाबा भोले का जलाभिषेक करने समुद्र अपने आप चलकर बाबा के दर पर आता है. ये मंदिर गुजरात की बड़ोदरा से 85 किलोमीटर दूर स्थित जंबूसर तहसील के कवि कंबोई गांव में स्थित है. पूरे भारत में भगवान भोलेनाथ के कई मंदिर हैं जिनके अलग-अलग पौराणिक आस्था और महत्व है. वही आज हम बात करेंगे गुजरात के एक ऐसे शिव मंदिर की जिसकी कहानी सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है. आपको बताये कि ये मंदिर सुबह और शाम में कुछ मिनट के लिए गायब हो जाता है. और फिर अपने स्थान पर लौट आता है. मंदिर के ज्वार भाटा उठने की वजह से होता है. आप शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते हैं, जब ज्वार कम होता है.
शिव-शक्ति के पुत्र कार्तिकय ने किया था इस मंदिर का निर्माण
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ताड़कासुर राक्षस भगवान भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था. इसी जगह पर उसने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप किया था. उसकी तप से खुश होकर भगवान भोलेनाथ ने उससे वरदान मांगने को कहा. तड़कासुर ने भगवान भोलेनाथ से कहा कि मुझे दुनिया में कोई दूसरा व्यक्ति मार ना सकता सिर्फ भगवान शिव का 6 दिन की आयु का पुत्र ही मुझे मार सकेगा. भगवान शिव ने ताड़कासुर को ये वरदान दे दिया.
इस वजह से हुई थी मंदिर की स्थापना
भगवान शिव से वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने उत्पाद मचाना शुरू कर दिया. ताड़कासुर के उत्पाद से परेशान देवी-देवता भगवान भोलेनाथ की शरण में पहुंचे. तब भगवान भोलेनाथ ने शिव-शक्ति के श्वेत से पुत्र कार्तिकय को उत्पन्न किया. 6 दिन की आयु होते ही कार्तिकय भगवान ने ताड़कासुर का वध कर दिया. लेकिन जब उन्हें पता चला कि ताड़कासुर भगवान भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था. तब उनके अंदर इस बात को लेकर आत्मग्लानी होने लगी कि उन्होंने भगवान शंकर के बड़े भक्त को मार दिया. तब देवी देवताओं ने उनसे इस जगह पर मंदिर बनाने को कहा, तब कार्तिकय भगवान ने ऐसा ही किया, और वध करने के स्थान पर ही स्तंभेश्वर मंदिर का निर्माण किया.
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