टीएनपी डेस्क (TNP DESK): जाते जाते ये साल हर साल की तरह कुछ खट्टी तो कुछ मीठी यादें देकर जा रहा है. इस बीतते हुए साल के अब कुछ ही दिन शेष रह गए है. ऐसे में नए साल का स्वागत करने के लिए जहां एक ओर सब तैयार है वहीं हर बार की तरह न्यू ईयर से पहले क्रिसमस फेस्टिवल ने भी वातावरण में अपनी छटा बिखेर दी है. यूं तो पूरे विश्व के लगभग सभी देशों मे क्रिसमस धूमधाम से मनाया जाता है परंतु भारत में क्रिसमस मनाने का अंदाज थोड़ा अलग है. जी हां कोई भी चीज जो विदेशों से इस भारत भूमि में आई यहां के रंग में रंग कर एक नए रूप को प्राप्त हो गई फिर चाहे वो चाइना की चाउमीन हो या नेपाल की मोमो इटली की पीजा हो या अमेरिका की बर्गर सबको भारतीय टच ने छूकर बना दिया है स्पेशल. वैसे ही भारत में ये त्योहार क्रिसमस बहुत ही अनोखे और भारतीय रूप में मनाया जाता है. झारखंड की राजधानी रांची में भी क्रिसमस को लेकर लोगों में बहुत उत्साह और धूम है. रांची के हर मुख्य चौक चौराहों पर क्रिसमस के सजावटों के समान से बाजार साज गया है. इस कंपकपाती ठंड में भी लोगों की भीड़ बाजारों में उमड़ पड़ी है. कई जगहों पर रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन हो रहा और लोग अपने प्रभु यीशु के जनम दिवस को धूमधाम से मनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. इन सबके बीच कोरोना ने चिंता बढ़ाई है कि कुछ गाइडलाइन जारी हुए है जिनका पालन करना भी जरूरी है लेकिन कोरोना लोगों के उत्साह को कम नहीं कर सकेगा. क्रिसमस के पर्व पर प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन सद्भाव व प्रेम के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है. वैसे तो ये ईसाई धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, लेकिन समय के साथ इसे हर धर्म और वर्ग के लोग बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं. क्रिसमस के दिन लोग एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं और केक काटकर क्रिसमस का आनंद उठाते हैं. इस त्योहार में केक और गिफ्ट के अलावा एक और चीज का विशेष महत्व होता है, वह है क्रिसमस ट्री. हर साल क्रिसमस के पर्व पर लोग घर में क्रिसमस ट्री लगाते हैं. रंग-बिरंगी रोशनी और खिलौनों से इसे सजाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्रिसमस पर्व मनाने का इतिहास क्या है कब शुरू हुआ इस तरह केक कट कर क्रिसमस मानना और कौन है सेंटा क्लाज़ आइए हम बताते है .
क्यों मानते हैं क्रिसमस
क्रिसमस, सामान्य रूप से, ईसा मसीह के जन्म के रूप में मनाया जाता है. लेकिन वास्तविक अर्थों में यह आध्यात्मिक जीवन की सच्चाई का प्रतीक है. जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था, तब दुनिया नफरत, लालच, अज्ञानता और पाखंड से भरी हुई थी. उनके जन्म ने लोगों के जीवन को बदल दिया. उन्होंने उन्हें आध्यात्मिकता, पवित्रता और भक्ति के महत्व के बारे में सिखाया और बताया कि कैसे वे अपने जीवन को बेहतर के लिए बदल सकते हैं. क्रिसमस का त्योहार हमें दिखाता है कि ज्ञान और प्रकाश से भरा जीवन दुनिया के कोने-कोने में फैले अंधेरे को दूर कर सकता है. यीशु मसीह ने लोगों को सिखाया कि वे केवल अपनी आध्यात्मिकता को जागृत कर सकते हैं यदि वे इसकी खोज करते हैं. उन्होंने उन्हें एक विनम्र और सरल जीवन जीने और सांसारिक सुखों की इच्छा को त्यागने की शिक्षा दी, क्योंकि संतुष्टि भीतर से आती है न कि उन चीजों से जिन्हें हम बाहर खोजते हैं.
क्या है मिडनाइट मास चर्च सर्विस
भारत और दुनिया भर में क्रिसमस ईव समारोह के अपने रीति-रिवाज और परंपराएं हैं. सबसे व्यापक रूप से प्रचलित परंपराओं में से एक मिडनाइट मास चर्च सर्विस है. कई देशों में, लोग क्रिसमस की पूर्व संध्या पर कुछ भी नहीं खाते या पीते हैं, और फिर मुख्य भोजन मिडनाइट मास सर्विस के बाद खाया जाता है. कई पारंपरिक त्योहारों की तरह भारत में क्रिसमस भी दोस्तों और परिवार के साथ स्वादिष्ट भोजन और क्रिसमस केक जैसे डेसर्ट का आनंद लेने का उत्सव है.
क्रिसमस ट्री का इतिहास
क्रिसमस ट्री को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, 16वीं सदी के ईसाई धर्म के सुधारक मार्टिन लूथर ने शुरू की थी. कहा जाता है कि मार्टिन लूथर 24 दिसंबर की शाम को एक बर्फीले जंगल से जा रहे थे, जहां उन्होंने एक सदाबहार के पेड़ को देखा. पेड़ की डालियां चांद की रोशनी से चमक रही थीं. इसके बाद मार्टिन लूथर ने अपने घर पर भी सदाबहार का पेड लगाया और इसे छोटे- छोटे कैंडल से सजाया. इसके बाद उन्होंने जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के सम्मान में भी सदाबहार के पेड़ को सजाया और इस पेड़ को कैंडल की रोशनी से प्रकाशित किया. वहीं क्रिसमस ट्री से जुड़ी एक कहानी 722 ईसवी की भी है. कहा जाता है कि सबसे पहले क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरू हुई. एक बार जर्मनी के सेंट बोनिफेस को पता चला कि कुछ लोग एक विशाल ओक ट्री के नीचे एक बच्चे की कुर्बानी देंगे. इस बात की जानकारी मिलते ही सेंट बोनिफेस ने बच्चे को बचाने के लिए ओक ट्री को काट दिया. उसी ओक ट्री की जड़ के पास एक फर ट्री या सनोबर का पेड़ उग गया. लोग इस पेड़ को चमत्कारिक मानने लगे. सेंट बोनिफेस ने लोगों को बताया कि यह एक पवित्र दैवीय वृक्ष है और इसकी डालियां स्वर्ग की ओर संकेत करती हैं. मान्यता है कि तब से लोग हर साल जीसस के जन्मदिन पर उस पवित्र वृक्ष को सजाने लगे. वजह चाहे जो भी हो प्राचीन काल से ही क्रिसमस ट्री को जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है. इसे ईश्वर की ओर से दिए जाने वाले लंबे जीवन के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता रहा है. मान्यता थी कि इसे सजाने से घर के बच्चों की आयु लम्बी होती है. इसी वजह से हर साल क्रिसमस डे पर क्रिसमस ट्री को सजाया जाने लगा.
पहली बार कब मनाया गया क्रिसमस
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि क्रिसमस 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें लोग ईश्वर का पुत्र मानते हैं. क्रिसमस शब्द क्राइस्ट मास से आया है. लेकिन ईसा मसीह की वास्तविक जन्म तिथि कोई नहीं जानता. ईसाई धर्म के अस्तित्व की पहली तीन शताब्दियों तक, ईसा मसीह का जन्मदिन या क्रिसमस बिल्कुल भी नहीं मनाया गया था. विद्वानों के अनुसार पहला साल जब 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया था, वह रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के समय 336 ईस्वी में था. यहां तक कि बाइबिल में भी ईसा मसीह के जन्म के सही दिन का जिक्र नहीं है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम इसे 25 दिसंबर को ही क्यों मनाते हैं. 25 दिसंबर को ही क्रिसमस क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर अलग-अलग थ्योरी हैं. एक प्रसिद्ध ईसाई परंपरा के अनुसार 25 मार्च को मैरी को बताया गया कि वह एक विशेष बच्चे को जन्म देंगी. 25 मार्च के नौ महीने बाद 25 दिसंबर है. इसलिए, 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाने के लिए एक दिन के रूप में चुना गया था. हालांकि, चर्च के अधिकारियों ने 25 दिसंबर को क्रिसमस समारोह के लिए तारीख के रूप में नियुक्त किया क्योंकि वे चाहते थे कि यह शैतान और मिथ्रा को सम्मानित करने वाले मौजूदा बुतपरस्त त्योहारों के साथ मेल खाए.
जानिए कौन है पहले सेंटा क्लाज़
इतिहास इस बारे में स्पष्ट लिखता है की पहले सेंटा क्लॉज थे मायरा के सेंट निकोलस. जी हाँ असली क्रिसमस के यही है वो सांता हैं जिन्हें बहुत उदार, दयालु और महान थे. उन्हें क्रिस क्रिंगल के नाम से भी जाना जाता था. इनके बारे में हालांकि कम जानकारी उपलब्ध है फिर भी माना जाता है कि यही वो प्रथम व्यक्ति थे जो चुपचाप आधी रात को लोगों की मदद किया करते थे और अपने इस गुप्त दान और मदद से बहुत से नेक कार्य किये जिनमें एक कथा बहुत प्रचलित है. एक ऐसी ही मशहूर कहानी एक गरीब व्यक्ति की है जिसकी तीन बेटियां थी. वह व्यक्ति इतना ज्यादा गरीब था कि अपनी बेटियों को दो वक्त का भोजन भी देने में समर्थ नहीं हो पा रहा था. ऐसे में वे अपनी बेटियों को गलत काम में भेजने को मजबूर हो रहा था. उनकी शादी के लिए इस गरीब के पास पैसे नहीं थे हमेशा उनकी शादियों के लिए चिंतित रहता था वह उनकी शादी कैसे कर पाता है उसके पास खाने के लिए पैसे नहीं थे. ऐसे में जब सेंट निकोलस को पता चल की ईं लड़कियों की जिंदगी खराब होनेवाली है तो चुपचाप ही आधी रात में उन लड़कियों के घर में जाकर उन की जुराब के अंदर सोने के सिक्कों से भरी थैलियां रख दी. सुबह जब लड़कियों ने देखा की सोने के सिक्के किसी ने रख दिए है तो वो उसे मन ही मन धन्यवाद देने लगी और इससे उनकी जिंदगी भी वेश्यावृति में जाने से बच गई . इन पैसे के मिलने से दरिद्रता खत्म हो गई और उनके पिता ने खुशी खुशी अपनी बेटियों की शादी भी की और उन्हें सुखी जीवन प्रदान किया. कहते हैं उस दिन की घटना के बाद से ही क्रिसमस की रात बच्चे इस उम्मीद से मोजे बाहर लटका आते हैं कि सुबह उनमें उन्हें उनके मनपसंद गिफ्ट मिलेंगे. फ्रांस में तो चिमनी पर लाल रंग के जूते लटकाए जाते हैं जिसमें सांता आकर गिफ्ट डालते हैं. ऐसी प्रथा वर्षों से ही चली आई है. सेंटा रेनडीयर्स पर चलते हैं इसलिए फ्रांस के बच्चे तो रेनडीयर्स के लिए जूतों में गाजर भर कर रखते हैं.
क्रिसमस के बारे में कुछ रोचक तथ्य
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