टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : कहा जाता है कि, जब सृष्टि के आरंभ होने पर चारों ओर अंधकार ही अंधकार फैला था. ऐसे में मां कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से अंधकार का विनाश कर सृष्टि में प्रकाश फैलाया था. साथ ही प्रकाश फैलते ही इस सृष्टि ने सांस लेना शुरू किया था. 3 अक्टूबर से शुरू हुए शारदीय नवरात्रि का आज चौथा दिन है. आज माता दुर्गा के चौथे रूप मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. मां कूष्मांडा पूरे ब्रह्मांड की रक्षा करती है. ऐसे में आज मां कूष्मांडा की पूजा करने से सारे रोग, दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं.
मां कूष्मांडा का स्वरूप
आठ भुजाओं वाली मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. इनके साथ हाथों में क्रमशः चक्र, गदा, धनुष, बाण, कमल, कमंडल, अमृकपूर्ण कलश, और एक हाथ में सभी सिद्धि-निधि वाली जप माला है. माता हरे रंग के वस्त्र में सिंह की सवारी पर दर्शन देती है. माता का स्वरूप बेहद शांत और सौम्य है.
मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से करने पर साधक यानी भक्त को मां कूष्मांडा की विशेष कृपा मिलती है. यश, धन-दौलत, बुद्धि और जीवन में सभी कष्टों से लड़ने की ताकत मिलती है. जीवन से सारे अंधकार दूर कर माता भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
ऐसे करें मां को प्रसन्न
जैसा कि मां कूष्मांडा का स्वरूप बेहद शांत और सौम्य है, ऐसे में माता की पूजा शांत वातावरण और शांत मन से करनी चाहिए. कूष्माण्डा का अर्थ होता है कुम्हड़ा. ऐसे में माता कूष्मांडा की पूजा करते वक्त माता को भोग में पेठा, दही और हलवा चढ़ाने से माता प्रसन्न होती है. कहा जाता है कि इन सबके अलावा माता को मालपुआ भी बेहद पसंद है. साथ ही हरे या नीले रंग के वस्त्रों में जो भक्त मां की पूजा करते हैं और इन चीजों का भोग चढ़ते हैं उन पर मां अपनी कृपा सदेव बनाएं रखती है.
इस मंत्र का करें जाप
“या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस मंत्र का जाप करने के साथ-साथ 108 बार ‘ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः’ का जाप करना चाहिए. इससे मन शांत और बुद्धि-विवेक का विकास होता है.
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