टीएनपी डेस्क: हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार को लेकर बहुत मान्यताएं हैं. लोगों की आस्था इन्हीं व्रत-पूजा पर टिकी हुई है. इन्हीं व्रतों में से एक व्रत है जितिया का. आज 25 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जा रहा है. खासकर झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश में आज महिलायें इस व्रत को करेंगी. जितिया व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है. इस व्रत पर माताओं की आस्था टिकी हुई है कि इस व्रत को करने से उनके संतान की आयु लंबी हो जाएगी और सुख-समृद्धि उनके जीवन में बने रहेगी. हालांकि, इस बात की पुष्टि विज्ञान नहीं करता है. लेकिन पुराणों और ग्रंथों में इस व्रत को लेकर कई कथाएं हैं. सालों से इन्हीं ग्रंथ और पुराणों के अनुसार ही हमारे पूर्वज भी व्रत-त्योहार मानते हुए आए हैं. ऐसे में ही जितिया व्रत करने की भी परंपरा शुरू हो गई.
क्यों किया जाता है जितिया का व्रत
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीतिया का व्रत किया जाता है. इस व्रत को मुख्यता झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में किया जाता है. इस दिन महिलायें अपने अपने बच्चे की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं. मान्यताओं के अनुसार, माताओं द्वारा भगवान जीमूतवाहन का व्रत पूरे विधि-विधान से करने से उनके संतान को लंबी उम्र और सारे कष्ट-रोग दूर हो जाते हैं.
सबसे पहले भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को सुनाई थी कथा
कहा जाता है कि, इस व्रत के बारे में सबसे पहले भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को बताया था. जब महाभारत युद्ध के वक्त अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्र की हत्या करने के साथ साथ अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की भी हत्या कर दी थी. जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया था. इसी दौरान भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को जितिया व्रत के बारे में बताया था. उत्तरा के बच्चे का नाम उसके बाद से जीवितपुत्रिका रखा गया. इस व्रत को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं.
व्रत की कथा
जितिया व्रत की कई कथाएं हैं. उन्हीं में से एक है गरुड और जीमूतवाहन की कथा. कहा जाता है कि, गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन जब अपना राजपाठ छोड़ जंगल में चले गए थे तब वहां उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई. वृद्ध स्त्री को रोता देख जब राजा जीमूतवाहन ने उनसे उनके रोने का कारण पुछा तो स्त्री ने बताया की रोजाना गांव में गरुड़ आता है और एक बच्चे को उठा कर ले जाता है और उसे अपना शिकार बनता है. आज मेरे बेटे की बारी है गरुड अभी आता ही होगा. स्त्री की बातें सुन राजा को स्त्री पर दया आ गई और उन्होंने उनसे उनके बेटे की जीवन को बचाने का वादा किया. जिसके बाद जब पक्षीराज गरुड गांव में आया तो राजा उनके समक्ष चले गए और अपने शरीर के अंगों को काटकर पक्षीराज को देने लगे. जिसके बाद पक्षीराज ने राजा की साहस और परोपकार को देखते हुए राजा का नाम पुछा और वरदान मांगने को कहा. जिसके बाद राजा ने गरुड़ को बताया की वह राजा जीमूतवाहन हैं और गांव के किसी भी बच्चे को अपना आहार न बनाने का वरदान मांगा. इससे गरुड़ खुश होकर राजा जीमूतवाहन को वरदान दिया की आज के बाद जो माता जीमूतवाहन की पूजा पूरे विधि-विधान से करेंगी उनकी संतान को आयु लंबी हो जाएगी और साथ ही सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. जिसके बाद से ही राजा जीमूतवाहन की पूजा की जाने लगी और जितिया के रूप में व्रत किया जाने लगा.
दूसरी कथा
जिनमें से चील और सियारिन की कथा जरूर पूजा के दौरान सुनी जाती है. पुराणों के अनुसार, एक चील और सियारिन अच्छी दोस्त थीं. एक ही पेड़ पर दोनों एक साथ रहती थी. साथ ही खाने से लेकर एक दूसरे का सुख-दुख का हिस्सा भी थी. एक दिन चील ने गांव की औरतों को जितिया व्रत की तैयारी करते देखा. जिसके बारे में चील ने सियारिन को भी बताया और कहा की उसे भी जितिया का व्रत करने का मन है. जिसके बाद दोनों ने जितिया का व्रत रखा. लेकिन पूजा करने के दौरान सियारिन को भूख का एहसास हो गया और वह भूख के कारण इधर-उधर भटकने लगी. ऐसे में जितिया के दिन ही गांव में ही किसी व्यक्ति की मौत हो गई थी. जिसके बाद अपनी भूख को शांत करने के लिए सियारिन ने उस अधजले शव को खा लिया. वहीं, दुसर तरफ चील ने पूरी श्रद्धा-भाव से जितिया का व्रत किया. कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई. लेकिन दोनों ने अगले जन्म में सगी बहन बनकर एक राजा के घर में जन्म लिया.
सगी बहने बन कर लिया पुनर्जन्म
अपने पुनर्जन्म में चील बड़ी बहन और सियारिन छोटी बहन बनी. दोनों का विवाह भी एक ही राज परिवार में किया गया. जिसके बाद चील ने सात बच्चों को जन्म दिया जबकि सियारिन के बच्चे जन्म होते ही मर जाते थे. ऐसे में अपनी बड़ी बहन चील की सुखी जिंदगी को देख सियारिन अपनी बहन से ही जलने लगी. अपनी इस जलन में सियारिन ने अपनी बहन के सभी सातों बेटों को जान से मरवा दिया. उसने चील के सातों बेटों के सिर कटवाकर उसे चील के पास भेजवा दिया.
सियारिन को हुआ पश्चाताप
भगवान जीऊतवाहन को जब यह पता चला तो उन्होंने मिट्टी से सात सिर बनवाएं और सभी के धड़ से सिर को जोड़ दिया और उसपर अमृत छिड़क दिया. जिससे सभी कटे सिर धड़ से जुड़ गए और सभी सातों बेटे पुन: जीवित हो गए. ऐसे में अपनी बहन को जब सियारिन ने रोते नहीं देखा तो उससे सारी बातें बताई. तब जाकर चील ने सियारिन को पिछले जन्म की सारी बातें याद दिलवाई. जिसके बाद सियारिन को अपनी गलती का पश्चाताप होने लगा.
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